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संघियों का इतिहास साज़िशों का इतिहास है। जो संघर्ष नहीं कर सकता, वह साज़िश ही करेगा- कन्हैया कुमार

जेनयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार मुम्बई स्थित अम्बेडकर प्रेस को विध्वंश के विरोधी रैली में शामिल हुए इस विरोध प्रदर्शन में लगभग 3 लाख भीम सैनिक उपस्थित थे कन्हैया ने अपने अंदाज में बीजेपी सरकार को जमकर लताड़ा कन्हैया ने कहा कहा कि "
आंबेडकर के विचारों की हत्या करने वाले लोग दलितों को गौरक्षा के नाम पर मार रहे हैं, महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है।दलितों के लिए उनके मन में कितनी नफ़रत है यह बात आंबेडकर भवन को गिराने की उनकी कोशिश से भी समझ में आती है। जिस भवन के लिए इंजीनियरों ने मामूली मरम्मत का सुझाव दिया है, उसे गिराकर 17 मज़िलों वाली इमारत बनाने की बात कहना असल में आंबेडकर के कई आंदोलनों का गवाह रहे भवन को जनता की स्मृति से मिटाने की साज़िश के अलावा और कुछ नहीं है। 25 जून को जब कायरों की तरह रात के अँधेरे में आंबेडकर भवन को गिराने की कोशिश की गई तो आंबेडकर की कई पांडुलिपियाँ बारिश में बाहर फेंक दिए जाने के कारण भीग गईं और कुछ बुरी तरह फट गईं। आंबेडकर की यादों से जुड़ी प्रिंटिंग मशीन को भी नहीं छोड़ा गया। आंबेडकर से जुड़ी चीज़ों की ऐसी दुर्दशा देखकर करोड़ों भारतीयों को दुख हुआ है। संघियों को उनके ग़ुस्से का अंदाज़ा नहीं है।

 संघियों का इतिहास साज़िशों का इतिहास है। जो संघर्ष नहीं कर सकता, वह साज़िश ही करेगा। पहले महाराष्ट्र के सूचना आयुक्त रत्नाकर गायकवाड़ को तमाम नियम-कायदों को ताक पर रखकर पीपुल्स इंप्रूवमेंट ट्रस्ट में शामिल करके आंबेडकर भवन को हड़पने की कोशिश की गई। जब बात नहीं बनी तो इस भवन को गिराने का षड्यंत्र रचा गया।

 आंबेडकर भवन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे प्रकाश आंबेडकर को जिस तरह घेरा जा रहा है उससे साफ़ पता चलता है कि संघियों के असली इरादे क्या हैं। जो लोग आंबेडकर की राह पर चलने की बात करते हैं लेकिन अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए भाजपा का दामन थाम लिया है, उनलोगों ने न केवल शोषितों के आंदोलन को कमज़ोर किया बल्कि प्रकाश आंबेडकर जैसे लोगों के संघर्ष को और ज़्यादा जटिल बना दिया। जिस समय संगठित होकर संघियों का मुकाबला करना था, उस समय वे संघियों को ही मज़बूत बना रहे हैं। 

 आज जो लोग आंबेडकर भवन को बचाने की लड़ाई में शामिल होने के लिए सड़कों पर निकले हैं वे जानते हैं कि इस भवन की भारत के इतिहास में क्या अहमियत है। जहाँ आंबेडकर ने बहिष्कृत भारत जैसा अख़बार निकाला, जहाँ रोहित वेमुला की माँ और भाई ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया, जहाँ दलितों ने मनुवाद से लड़ने के लिए न जाने कितने आंदोलनों की शुरुआत की, वहाँ संघियों का कब्ज़ा होने की बात से ही हमें कितनी परेशानी हो सकती है यह जानना मुश्किल नहीं है। वे साज़िश करेंगे और हम संघर्ष। लड़ेंगे, जीतेंगे।"


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1 comment:

  1. Rss/bjpएकममनुवादी सन्स्था है

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