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14 अक्टूबर 1956 को नागपुर की दीक्षा भूमि पर लगभग 8 लाख लोगो के साथ बाबासाहेब ने बौद्ध धम्म क्यों स्वीकारा?

जिसे अपने दुखों से मुक्ति चाहिए उसे आज़ादी के लिए लड़ना होगा, जो लड़ना चाहता है उसे पढ़ना होगा, आज बहुजनों कि दशा में जो सुधार है उसका मूल कारण बाबा साहब आंबेडकर की पढ़ाई और संघर्ष है, परंतु अफ़सोस आज के पढ़े लिखे लोग अपने समाज के लिए कुछ नहीं करना चाहते।
सरकार द्वारा धीरे-धीरे संवैधानिक अधिकारो को खत्म किया जा रहा है किन्तु आज भी हमारे लोग मनुवादियों की गुलामी की बेड़ियों से मुक्त नही होना चाहते।
जब तक अनुसूचित जाति-जनजाति, पिछड़ा वर्ग एंव धर्म परिवर्तित लोग अपने महापुरुषो के संघर्ष, त्याग से अनभिज्ञ रहेंगे तब तक यूँ ही शोषित होते रहेंगे।
आए दिन शँकराचार्य, एंव कथित धर्म के ठेकेदारो द्वारा शुद्र कहकर पशु से बदत्तर कहा जाता है और इन्हें मन्दिरो से लात मार कर भगा दिया जाता फिर भी यह अपने स्वाभिमान-आत्म सम्मान को कुचल रहे है मनुष्य होते हुए भी अपमानित हो रहे है।
गौरतलब है कि हाल ही में तरुण विजय, सांसद द्वारा उत्तराखण्ड मन्दिर में इन्ही मानसिक गुलामो को मन्दिर प्रवेश का प्रयास किया गया तो जानलेवा हमला किया गया फिर भी हमारे लोग नही समझते कि यह सब किस संस्कृति-व्यवस्था के कारण हो रहा है?
आज भी इस देश में दूल्हे को घोड़ी चढ़ने पर जातिवादी आतंकवादियो द्वारा हमला किया जाता है तब मिडिया भी इन पागल भेड़ियो को दबंग कह कर महिमामण्डित करता है।
4 जुलाई को झाँसी(उ.प्र) में एक युवती एंव उसके भाई को इस लिए मारा गया क्योकि उनका जन्म हिन्दू धर्म के शुद्र वर्ण में हुआ है।
ऐसे अत्याचार के लिए यह व्यवस्था तो दोषी है ही लेकिन इस व्यवस्था से चिपके रहना भी मुख्य वजह है।
शिक्षित युवाओ से अपील है वे भारत रत्न डॉ.बाबासाहेब के किये संघर्षो को जाने आखिर उन्होंने अपने मासूम 4 बच्चों को किसके लिए कुर्बान किए?
अपनी जीवन संगनी रमा बाई की कुर्बानी क्यों दी?
14 अक्टूबर 1956 को नागपुर की दीक्षा भूमि पर लगभग 8 लाख लोगो के साथ बौद्ध धम्म क्यों स्वीकारा?
जब तक इन प्रश्नो का उत्तर आप नही जानेंगे तब तक यह जातिवादी आंकवाद हमारे मासूम लोगो की जान लेते रहेगा।
-सुरेश पासवान, महासचिव, वी लव बाबासाहेब(आईटी एंव सोशल मिडिया संगठन)

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