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साहूजी ने ब्राह्मणों के प्रभुत्व तथा सर्वोच्चता को हर सम्भव तर्कपूर्ण तरीके से चुनौती दी।

समाजिक जनतन्त्र के आधार स्तम्भ-छत्रपति शाहूजी महाराज..


छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 26 जुन 1874 कोल्हापुर में हुआ था। 2 अप्रैल 1894 ई. को शाहूजी गद्दी पर बैठे तथा उन्होंने सन् 1894 से सन् 1922 तक कोल्हापुर स्टेट पर राज किया। 6 मई 1922 को उनकी मृत्यु हो गई।
अपने 28 वर्षो के शासन काल में शाहूजी महाराज ने मूलनिवासी बहुजन समाज के लिए जो कार्य किये वो भारत के इतिहास में बेमिसाल है उनका 28 वर्षो का शासन इतिहास के पन्नों को एक नया मोड़ देने वाला था। मूलनिवासी बहुजन समाज के उत्थान का यह स्वर्णिम काल था। जिसमे उन्होंने सामाजिक समानता, सामाजिक न्याय, सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक क्रांति तथा मानवतावादी विचारधारा को नए आयाम प्रदान किये। वे ब्राह्मणों के प्रभुत्व तथा वर्ण व्यवस्था द्वारा स्थापित ब्राह्मणों के सामाजिक शीर्ष स्थान के विरुद्ध गैर ब्राह्मणों के सामाजिक सेनापति थे। उन्होंने ब्राह्मणों के प्रभुत्व तथा सर्वोच्चता को हर सम्भव तर्कपूर्ण तरीके से चुनौती दी।

सन् 1901 में कोल्हापुर स्टेट की जनगणना की गई और इस जनगणना रिपोर्ट में अछूतों की दयनीय दशा पर प्रकाश डाला गया। उस समय कोल्हापुर स्टेट में 103889 अछूत लोग थे।
अछूत गाँव के बाहर रहते थे जो कि गन्दगी भरा स्थान होता था जहां कि गॉंव का कूड़ा, कचरा तथा गन्दगी का ढेर होता था। अछूत लोग सार्वजनिक कुओ, तालाबो पर पानी नही पी सकते थे। वे सार्वजनिक स्थानों पर खड़े भी नही हो सकते थे तथा सार्वजनिक स्थानों पर किराया देकर भी ठहर नही सकते थे। वे प्यास से तड़प-तड़प कर मर जाते थे मगर उन्हें कुओ और तालाबो से एक बून्द पानी नसीब नही होता था। वे सवर्ण हिन्दुओ (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तीन वर्णों) के घर जाना तो दूर उनके आँगन में भी खड़े नही हो सकते थे। अछूतों को छूना तो दूर उनकी परछाई भी अपवित्र पाप समझी जाती थी। गलती से कोई अछूत से सवर्ण को छु भी जाता था तो वह घर जाकर स्नान करता था और गौ मूत्र छिड़कर पवित्र करने का कार्य किया जाता था।

अछूतो को केवल मन्दिरो में जाने की ही मनाही नही थी बल्कि वे उसके आस-पास भी रुक नही सकते थे। अछूतो को गन्दगी में जीवन जीने पर मजबूर किया गया था। उनके तन पर कपड़ा कम ही होता था। उनके अस्थिपंजर समान झुर्रीदार चेहरे उनकी दासता की कहानी स्वयं कहते थे। वे गॉंव की सरहद के बाहर गन्दगी में जीने को मजबूर थे। पेशवाओ(ब्राह्मणों) ने अछूतों के लिए अलग से नियम बना रखे थे। उनसे कठोर परिश्रम करवाया जाता था। छोटी-छोटी गलती पर उन्हें मृत्युदण्ड की सजा दी जाती थी।यहाँ तक कि उन्हें गले में थूक के खातिर हाँडी तथा अपने पैरो के निशान जमीन से मिटाने के लिए कमर में झाड़ू बांधने पर मजबूर थे।
आज जो अपने आपको कट्टर हिन्दू समझने में गर्व करते है उनके पूर्वजो के खून के आशुं बहाने पर किन लोगो ने मजबूर किया था?

उनको केवल एक कार्य दिया जाता था जिसके मूत्र को यह पवित्र समझते है/थे, जिसे अपनी माँ का दर्जा देते है/ थे  उसकी लाश को इन्हें उठाने पर मजबूर किया गया वे मरे हुए जानवरो को बाहर ले जाये और उसे ही अपना भोजन करे अर्थात मरे हुए जानवरो को खाएं और उनकी खाल को अन्य तरीको से उपयोग में लाये। उनको मरे हुए जानवर के माँस से पेट की आग शांत करने पर मजबूर किया गया था। कोई अधिकार नही थे केवल एक कर्तव्य था कि वे उच्च वर्णों के दास बने रहे। वे पैदा इन्शान की तरह होते थे मगर जानवरो सा जीवन जी कर मौत भी उन्हें जानवरो से बदत्तर नसीब होती थी।

सन् 1901 की जनगणना रिपोर्ट से अछूतों की दशा सार्वजनिक हुई। शाहूजी महाराज ने उनकी समस्याओ का निराकरण करने का प्रयास प्रारम्भ किया। साथ ही इन दबे-कुचले लोगो में एक दूसरे के प्रति बन्धुत्व पैदा करने, उनकी संवेदनाओ पर भावनाओ का एकीकरण करने का प्रयास किया।
26 जुलाई 1902 को महाराज ने आदेश दिया की पिछड़े वर्गो के लिए सरकारी नौकरियों में 50% आरक्षण दिया जायेगा इसलिए उन्हें आरक्षण का जनक कहा जाता है।
पिछड़ावर्ग कौन है?

ब्राह्मण,क्षत्रिय,पारसी,बनिया अन्य अगड़ी जातियो के लोगो को छोड़कर शेष पिछड़ा वर्ग का दर्जा दिया गया। इस प्रकार उन्होंने ज्योतिबाफुले के 85% विरुद्ध 15% की विचारधारा को ही बल दिया।
शाहूजी महाराज के सभी कार्यो को विस्तार से बताया जाएगा तो एक किताब लिखना पढ़ेगा इसलिए संक्षेप में उनके कुछ क्रांतिकारी कार्यो को बताना उचित होगा।
सभी को शिक्षा मुहैया करने के लिए उन्होंने अपने राज्य में मुफ़्त एंव अनिवार्य शिक्षा  प्रणाली लागु की किन्तु आज आजादी के लगभग 65 साल बीतने के बावजूद भी भारत सरकार ऐसी कोई कारगर नीति नही बना पाई। अस्पृश्यता निवारण हेतु कठोर कानून बनाये, बन्धुआ मजदूरी की समाप्ति 3 मई 1920 में कठोर नियम बनाये, मन्दिरो पर सरकारी नियंत्रण इससे भी अधिक तूफानी कदम शाहूजी महाराज ने यह उठाया कि शँकराचार्य के मठो को भी सरकारी नियंत्रण के तहत किया ।

तथा घोषित किया की नया मठाधीश केवल महाराज की अनुमति से ही नियुक्त किया जा सकता है ब्राह्मणों ने शाहूजी के कार्यो का पुरजोर विरोध किया तथा उनकी कड़ी भर्त्सना की तिलक ने तो शाहूजी को यह धमकी भी दे डाली कि क्या शाहूजी को उनके पूर्वज शिवाजी महराज का हश्र याद नही है? शाहूजी के नौकर ब्राह्मण ने उनका अपमान किया जब शाहूजी के भाई ने पण्डित से कहा की वे तो क्षत्रिय है तो इस पर पण्डित राजाराम शास्त्री ने कहा की शुद्र चाहे ताकत के बल पर या अन्य किसी प्रकार से यदि राजपाठ हासिल कर ले और खुद को क्षत्रिय समझने लगे तो वह स्वंय के कहने मात्र से क्षत्रिय नही बन सकता जब तक ब्राह्मण वर्ग उसे क्षत्रिय वर्ग का दर्जा प्रदान न करे उसने कहा आप भले ही महराज हो परन्तु वह उन्हें एक शुद्र से अधिक कुछ और नही समझता इस घटना से शाहूजी महाराज को बहुत गहरा धक्का लगा।

यधपि महराज जो समाजिक व्यवस्था में सुधार लाने के प्रयास कर रहे थे वो समस्त मानवता के लिए गर्व की बात थी उनका समाज सुधार के इन कार्यो को करने का उद्देश्य किसी विशेष वर्ग का विरोध करना नही था बल्कि वे तो इन्शान को इंसानियत के अधिकार मिले इसके लिए कार्य कीये किन्तु उनके इस कार्यो से ब्राह्मणों के प्रभुत्व,उसके विशेष हितों को प्रभावित कर रहे थे इस लिए तत्कालीन यह वर्ग शाहूजी का कट्टर विरोधी बन गया।
भारत रत्न डॉ.बी.आर अम्बेडकर जी के लिए जो सहायता की वह अतुलनीय है उस पर हम और कभी विस्तृत चर्चा करेंगे।

48 वर्ष की अल्प आयु में ही ऐतिहासिक पुरुष दुनीयाँ से अलविदा कह गया। मगर अपने इस छोटे से जीवन काल में उन्होंने जो कार्य किये उन्हें सैकड़ो वर्ष के शासन काल में भी शायद कोई दूसरा करने का साहस जुटा पाता।
संकलन:सुरेश पासवान, महासचिव #welovebabasaheb
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