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मेरा जन्म हिन्दू धर्म में हुआ है यह मेरे बस में नही था किन्तु मैं हिन्दू बन कर मरूँगा नही यह मैं घोषित करता हूँ - बाबासाहेब अम्बेडकर


जातिवादी आतंकवाद कैसे खत्म होगा?
गुजरात से पहले भी कई रोंगटे खड़े कर देने वाली धार्मिक-जातिवादी घटनाओ ने आतंकित किया है मानवता को शर्मसार किया है। आखिर यह भेदभाव क्यों होता है? इसका मूल कारण धार्मिक व्यवस्था है क्योकि भारतीय जन्म से मृत्यु तक धार्मिक कर्मकांडो या रीति-रिवाजो से गहराई से जुड़े रहते है तो यह निश्चित है की वे धर्म ग्रंथो द्वारा घोषित व्यवस्था का पालन भी करते है। ब्राह्मण धर्मानुसार धरती का देवता सिर्फ ब्राह्मण है और वही अंतिम सत्य भी है। बाकि सभी वर्णानुसार निम्न या नीच है। प्रगतिशील विचारधारा के उच्च वर्णीय हिन्दू यह सही है की जाति बन्धन नही मानते किन्तु वे शादी-विवाह, धार्मिक रीति रिवाज अपनी जाति अनुसार ही करते है जिससे यह कुव्यवस्था मजबूत होती जाती है 6543 जातियाँ आपस में प्रतिस्पर्धा करती है हर जाति के लोग दूसरी जाति को नीच जाति का समझते है इस व्यवस्था में भाईचारा गौण है, भेदभाव प्रमुख स्थान पर है इस व्यवस्था में अपनी जाति को कौन छुपाते है?  जिन्हें नीच कहा जाता है वे बिचारे हिन्दू-हिन्दू जपते है, किन्तु जब जातिगत अपमान होता है तब उन्हें बाबासाहेब के दिए गए संवैधानिक हक नजर आते है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ही अपनी जाति पर गर्व करते है। और गौर करने वाली बात यह है की यही उच्चवर्णीय लोग जातिवादी आतंकवाद को प्रश्रय या बढ़ावा देते है। कुछ शिक्षित कथित सवर्ण भी मानवता वादी होते है इस तथ्य को स्वीकार करना होगा हर हिन्दू जो घोषित उच्च वर्ण से है वह भी जातिवादी आतंकी होता है यह कहना गलत है।
                   भारत रत्न बाबासाहेब अम्बेडकर ने 1935 में सार्वजनिक सभा में घोर अपमान, अत्याचार को मध्यनजर रखते हुए कहा था कि " मेरा जन्म हिन्दू धर्म में हुआ है यह मेरे बस में नही था किन्तु मैं हिन्दू बन कर मरूँगा नही यह मैं घोषित करता हूँ। उनकी इस घोषणा से पुरे देश में खलबली मच गई सभी धर्मो के धर्माचार्यो ने उनसे मुलाकात करके आग्रह किया की वे उनका धर्म स्वीकार कर ले किन्तु बाबासाहेब ने 21 वर्षो तक सभी प्रमुख धर्मो के ग्रंथो का गहन अध्ययन किया उसका शोध किया तद्पश्चात वे निर्णय की स्थिति में पहुंचे की हर शुद्र, अस्पृश्य कही जाने वाली जातियो को बौद्ध धम्म स्वीकार करके भारत को प्रबुद्ध भारत बनाना चाहिए उनका स्पष्ट मत था कि जब तक जाति व्यवस्था कायम रहेगी तब तक देश सर्वांगीण विकास नही कर सकता है इसलिए ve बुद्ध की शिक्षाओ में समानता, बन्धुत्व, न्याय प्रमुख है उससे प्रभावित हुए।
बुद्ध ने साफ कहा था कि उनका उपदेश स्वयं उनके विचारो पर आधारित है, उसे दूसरे तब स्वीकार करें, जब वे उसे अपने विचार और अनुभव से सही पाएं। जिस प्रकार एक सुनार सोने की परीक्षा करता है, उसी प्रकार मेरे उपदेशों की परीक्षा करनी चाहिए। दूसरे किसी भी धर्म संस्थापक ने कभी यह बात नहीं की।

यही कारण है कि डॉ. अम्बेडकर ने दूसरे किसी धर्म को न अपना कर बौद्ध धर्म का ही चुनाव किया। डॉ. अम्बेडकर के अनुसार बौद्ध धर्म नैतिकता पर आधारित, विज्ञान से संबंध रखने वाला धर्म है। फिर भी हम यदि बौद्ध ग्रंथों में कोई विवरण आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान के विरुद्ध पाते हैं तो बौद्ध होने के नाते हम उसे अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र हैं। ऐसी स्वतंत्रता अन्य किसी भी धर्म में नहीं है।

1948 में हू वर द शुद्राज़? अस्पृश्य: अस्पृश्यता के मूल पर एक शोध) मे अम्बेडकर ने हिंदू धर्म को लताड़ा।

हिंदू सभ्यता .... जो मानवता को दास बनाने और उसका दमन करने की एक क्रूर युक्ति है और इसका उचित नाम बदनामी होगा। एक सभ्यता के बारे मे और क्या कहा जा सकता है जिसने लोगों के एक बहुत बड़े वर्ग को विकसित किया जिसे... एक मानव से हीन समझा गया और जिसका स्पर्श मात्र प्रदूषण फैलाने का पर्याप्त कारण है?
-बाबासाहेब अम्बेडकर

डा बी.आर. अम्बेडकर ने दीक्षा भूमि, नागपुर, भारत में ऐतिहासिक बौद्ध धर्मं में परिवर्तन के अवसर पर, 
14 अक्टूबर 1956 को अपने अनुयायियों के लिए 22 प्रतिज्ञाएँ निर्धारित कीं.800000 लोगों का बौद्ध धर्म में रूपांतरण ऐतिहासिक था क्योंकि यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक रूपांतरण था। उन्होंने इन शपथों को निर्धारित किया ताकि हिंदू धर्म के बंधनों को पूरी तरह पृथक किया जा सके.ये 22 प्रतिज्ञाएँ हिंदू मान्यताओं और पद्धतियों की जड़ों पर गहरा आघात करती हैं। ये एक सेतु के रूप में बौद्ध धर्मं की हिन्दू धर्म में व्याप्त भ्रम और विरोधाभासों से रक्षा करने में सहायक हो सकती हैं। इन प्रतिज्ञाओं से हिन्दू धर्म, जिसमें केवल हिंदुओं की ऊंची जातियों के संवर्धन के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया, में व्याप्त अंधविश्वासों, व्यर्थ और अर्थहीन रस्मों, से धर्मान्तरित होते समय स्वतंत्र रहा जा सकता है।

22 प्रतिज्ञाएँँ:

१. मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।
२. मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा ।
३. मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।
४.  मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ।
५.  मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ।
६. मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूँगा।
७. मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा।
८. मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा।
९. मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ।
१०. मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगा।
११. मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुशरण करूँगा।
१२. मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन करूँगा।
१३. मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालुता रखूँगा तथा उनकी रक्षा करूँगा।
१४. मैं चोरी नहीं करूँगा।
१५. मैं झूठ नहीं बोलूँगा।
१६. मैं कामुक पापों को नहीं करूँगा।
१७.  मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा।
१८.मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और प्यार भरी दयालुता का दैनिक जीवन में अभ्यास करूँगा।
१९. मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा।
२०. मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और प्यार भरी दयालुता का दैनिक जीवन में अभ्यास करूँगा।
२१. मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ।
२२. मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है।
                            मुझे विश्वास है कि मैं फिर से जन्म ले रहा हूँ (इस धर्म परिवर्तन के द्वारा)।
मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके (धर्म परिवर्तन के) बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार मार्गदर्शन करूँगा।

प्रश्न यह उठता है की शोषित वर्गो ने बाबासाहेब अम्बेडकर की बातो को आत्मसात क्यों नही किया?
नही किया इसलिए अमानवीय घटनाओ से रूबरू हो रहे है आज गुजरात की घटना के दृष्टिगत रखते हुए इन वर्गो को चाहिए की वे बाबासाहेब के दिए धम्म को आत्मसात करे एंव पुराने घृणित व्यवसाय को छोड़ कर शिक्षा पर विशेष ध्यान दे तभी यह जातिवाद खत्म होगा,
अपने आपको शुद्र कहना छोड़ दो घृणित कार्य छोड़ कर इनके आगे नाक मत रगड़ो स्वभिमान के साथ
चलो बुद्ध की शरण में!!
 जय भीम -जय भारत


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