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विश्वविभूति भारत रत्न डॉ. बी.आर. अम्बेडकर द्वारा लिखित किताब जरूर पढ़िए

हिन्दू धर्म की पहेली के नाम से बाबासाहेब ने जो किताब लिखी थी वह आज के वर्तमान परिवेश में बहुत ही प्रासंगिक हो गई है क्योकि अनुसूचित जाति, जनजातियां आज ढोंगी बाबाओ एंव धार्मिक कुरूतियों के कारण मानसिक गुलाम हो गए है वे डिग्री धारी होते हुए भी अज्ञानी, अंधविश्वासी हो गए है।

आए दिन धार्मिक शोषण की खबरे प्रकाशित होते रहती है संचार क्रांति के इस युग में हम घर में बैठे बैठे भी बाबासाहेब द्वारा लिखित पुस्तको को खरीद सकते है।

इस लिंक पर एक क्लिक करते ही बाबासाहेब की यह क्रन्तिकारी पुस्तक आर्डर करीए।
हिन्दू धर्म की पहेली डॉ.बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा लिखित किताब ऑनलाइन उपलब्ध। जरूर पढ़िए

6 comments:

  1. Mukesh Kumar(September 6, 2016)
    ये रहस्य कब सुलझेगा। पुरे विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ 99.99 % लोग धर्म, भगवान, धर्मगुरु, जादू-टोना, अघोरी विद्या, भूत, प्रेत का अस्तित्व मानते है और हर घर में इसकी खूब चर्चा भी होती है! रोटी, कपडा, मकान, शिक्षा, सुरक्षा मिले ना मिले इन काल्पनिक धर्म (जो हकीकत में संप्रदाय है) और विसंगत विद्या की वो खुराक का हर घर से 100% प्रतिशत है! इसके लिए "घर वापसी" "झाड़-फूंक" तंत्र-मंत्र और "सत्य नारायण पूजा" जैसी योजनाए भी चलाई जाती है! अब रहस्य ये है कि भारत की 1.25 करोड़ धार्मिक आबादी, 60 लाख साधु + धर्मगुरु, 33 करोड़ देवी देवता और कई सौ करोड़ आत्मायें और भूत-प्रेत, जिन्न, यह सब शक्तियां मिलकर भी भारत की भूखमरी, अविद्या, रोजगार, सुरक्षा, बलात्कार, भ्रूण हत्या, हर घर में बेटे की मांग, कालाधन, भ्रष्टाचार, छूत, अछूत, आतंकवाद, आदिवासी, कश्मीर मुद्दा, भारत को महाशक्ति बनाना, दहेज़-प्रथा, इन सब कर्क रोग को यह सारी शक्तियां मिलकर भी क्यों नहीं सुलझा पा रही है!
    अब यह बात समझ में आती है या तो ऐसी कोई शक्तियां हैं ही नहीं! या हम हमारे धर्म को तो गलत तरीके से समझ रहे है, या धर्म (जो की संप्रदाय है) को सोची समझी साजिश के तहत पेश किया जा रहा है या तो हम सब कुछ जानते हुए भी इन पवित्र धर्म का हमारे स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे है!
    एक बात और हमारे आज के आध्यात्मिक गुरु, सामाजिक दुष्प्रथाओं पर सिर्फ प्रवचन देते है, सरकारों पर जन आंदोलन द्वारा दबाव नहीं बनाते क्योंकि ये ज्यादातर धर्म की आड़ में व्यापार करने में लगे है! ये धर्मगुरु पद्म भूषण, पद्म विभूषण जैसे पुरस्कारों के भूखे है!
    अंत में एक ही बात समझ में आती है, धर्म तो सिर्फ एक ही होता है "मानवता और कुदरत का कानून" जो किसी से भेद-भाव नहीं करता! बाकी सब संप्रदाय हैं, जो अपने-अपने वर्चस्व और स्वार्थ के लिए लड़ रहे है!
    हमें संपूर्ण मानव जाति को हमारे धर्म, भगवान और संस्कृति से प्रेरित होकर, एक धर्म संगत समाज की स्थापना की ओर कदम बढाने की जरुरत है, ना कि केवल पूजा-पाठ, कर्म-कांड के सहारे मूर्ति-पूजा के सहारे बैठकर, यह सोचना है कि जो करेंगे प्रभु करेंगे। यह सब उसकी मर्जी से हो रहा है। ऐसा कहकर, हम हमारे दायित्व से पल्ला नहीं झाड़ सकते! ऐसा करके, हम उस महान प्रभु का केवल और केवल अपमान ही करते है!
    पत्थर की मुर्तियां केवल हमें प्रेरणा देने के लिए हैं, जो भी करना है वह इंसान को ही करना है! "आओ कदम बढ़ायें, शुद्ध धर्म की और मानव धर्म की ओर!

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