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जुल्म अत्याचार सहन करने वाले और उसे देखने वाले इन्शान नही पशु से बद्दतर है उन्हें दलित नाम ही सुटेबल करता है

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इतना जुल्म अत्याचार सहन करने वाले और उसे देखने वाले इन्शान नही पशु से बद्दतर है उन्हें दलित नाम ही सुटेबल करता है आये दिन अत्याचार-अपमान की खबरे सामने आती है जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते है किन्तु फिर भी चिपके हुए है उसी गुलामी की जंजीरों से, मजे की बात यह है की यह जंजीरे लोहे की नही है किन्तु लोहे से मजबूत धातु ब्राह्मणवाद से बनी जंजीरे है. जिसकी खोज मनु ने की थी उसे तोड़ने के लिए हथोड़े या बेल्डिंग मशीन की जरूरत नही पडती बल्कि ज्ञान, बुद्धि, तर्क, परिक्षण, इन चार औजारों से इस जंजीर को बहुत ही सरलता से तोड़ा जा सकता है किन्तु यह इतना आसान नही है जितना पढने से लग रहा है. क्योकि अनुसूचित जाति, जनजाति एंव पिछड़ा वर्ग इस गुलामी से आज कल या १००-२०० सालो से नहीं बल्कि लगभग ५००० वर्षो से भगवान, कर्मकांड, पूजा, उपवास, पर्व, रीतिरिवाज, जातिव्यवस्था, संस्कार, प्रथा, कुप्रथा, परम्परा के नाम पर चमत्कारों की कोरी, काल्पनिक कहानियों व्दारा इन्हें भ्रम जाल की काली कोठरी में कैद किया गया है. यह कैद या गुलामी है इस बात से ये अनजान मद मस्त है जैसे शराबी नशे में मदहोश रहता है उसी तरह यह धर्म के नाम से मदहोश है. इन्हें जूते से मारो, लात से मारो, डंडे से मारो या लोहे की राड से मार मार कर अधमरा कर दो तब भी बोलेंगे हे भगवान, पंडित जी, ठाकुर साहब. इन्हें धर्म के नाम पर मल मूत्र खाने पिने को बोला जाता है तो भी यह गर्व से उसे ग्रहण करते है इन वर्गो को गुलाम बनाये रखने के लिए धर्म ग्रंथो के माध्यम से कठोर नहीं भयानक नियम बनाये गये है जैसे कई बार बताया जा चूका है कि शिक्षा, रोजगार, व्यपार, राजनीति से प्रतिबंधित किया गया है इसी का परिणाम है की आज आजादी  के ७० वर्षो के  बाद भी सडको, कारखानों, खेत हर क्षेत्र में मजदूरी करने वाले इन्ही वर्गो के लोग पाए जाते है. महिलाये अर्धनन्ग रहती है और बारिस, ठंड, तेज गर्मी में रात दिन न्यूनतम मजदूरी करने पर मजबूर है, छोटे – छोटे बच्चे भीख मांगने पर मजबूर है बाल श्रम कानून का खुल्लम खुल्ला मजाक आजाद भारत देश में ही उड़ाया जाता है. निरक्षरता का प्रतिशत भी इन्ही लोगो के कारण ज्यादा है सरकार शिक्षा के माध्यम से इन्हें घटिया दर्जे की शिक्षा देती है शिक्षा में भी षड्यंत्रपूर्वक वर्ण आधारित शिक्षा व्यवस्था बनाई गई है ताकि यह शोषित वर्ग गुलाम ही रहे जबकि भारतीय संविधान सभी भारतीयों को समान शिक्षा की व्यवस्था करता है किन्तु भरता सरकार, राज्य सरकारे शिक्षा माफियाओं के साथ गठ्बन्धन करके इन शोषित वर्गो के भविष्य को बर्बाद करने के गंदे खेल में लगी हुई है देश में अलग – अलह शिक्षा बोर्ड है अलग- अलग पाठ्यक्रम है इस भेदभाव का शिकार ९५% जनसंख्या बहुजन जातियां ही हो रही है. मध्यान भोजन के नाम पर बच्चो को कटोरा पकडाया जा रहा है, यह विषय अपने आप में ही बहुत व्यापक है जिसकी चर्चा हम अगले लेख में करेंगे. जो वर्ग शिक्षित हो कर रोजगार, व्यपार, में लग गया है वह निरक्षरों इन बेचारे गरीब मजदूरों से भी बदत्तर सोच रखता है उसे अपने स्वाभिमान- सम्मान की कोई प्रवाह नही है वह अपनी तरक्की का श्रेय ईश्वर, पंडे पुजारियों को देता है उसे यह जरा भी ज्ञान नही है की यदि बुद्ध, फुले, साहूजी, पेरियार, बिरसा, आंबेडकर का कठोर संघर्ष नही होता तो आज वह मन्दिरों में घंटा बजाने के लायक नहीं रहता बल्कि गले में मटका, कमर में झाड़ू, बाँध कर बस्तियों से बाहर मृत पशुओ का सड़ा गला मांस खाने पर मजबूर होता और वह कुत्ते का झूठा मासं भी खाता, मिनरल वाटर नही गंदी नालियों का पानी भी मुश्किल से पी पाता यह सब बार- बार इसलिए बताया जाता है क्योकि यह कटु सत्य है. और इस सत्य को भूल कर अपमानित न हो पाए, अत्याचार न सहना पड़े लेकिन आज के कुछ पढ़े लिखे अनपढ़ बोलते है की हमारे साथ ऐसा नही होता है ब्राह्मण मेरा झूठा खाता है यह सब इतिहास है अब वह दिन बीत गये तो फिर उन बातो से क्या मतलब? मध्यप्रदेश के आई ए एस अधिकारी रमेश थेट का नाम अखबारों की सुर्खियों में था उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया की उन से भेदभाव किया जा रहा है उसी तरह पंजाब के प्रोफेसर अरुण कुमार ने सार्वजनिक किया था की उन्हें कुर्सी पर बैठने नही दिया जाता था, डा. रोहित वेमुला के साथ भी जातीय भेद भाव हो रहे थे अभी हाल में जब अनुसूचित जाति की होनहार बेटी अपनी कड़ी मेहनत और भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त विशेष अधिकार के कारण सिविल सर्विसेस परीक्षा में मेरिट में आई तो पुरे देश में इस बेटी की योग्यता पर बधाई नही उसे अपमानित किया जा रहा था उसकी योग्यता पर प्रश्न खड़े किये जा रहे थे जबकि टीना डाबी ने सभी को पछाड़ा था इन्हें हमारे संविधान व्दारा मिले आरक्षण से ही तकलीफ होती तो कोई ज्यादा विचारणीय बात नही थी किन्तु इन्हें हमारी तरक्की से चिड है नेता, अधिकारी, अनपढ़ कथित सवर्ण हमे आये दिन जातिसूचक भद्दी टिप्पणी करके अपमानित करते  है. धर्म गुरु कुत्तो से बदत्तर घोषित करते है तो यह पढ़े लिखे अनुसूचित जाति जनजाति एंव पिछड़ा वर्ग के लोगो का अपमान नही है? सोचिये यदि हमारे महापुरुष इन्ही कथित पढ़े लिखे लोगो की तरह सोचते तो हमारे लिए वो संघर्ष क्यों करते? बाबासाहेब ने जितनी शिक्षा प्राप्त की थी उस परिस्थिति क्या उस लायक तुम हो? वे भी सोचते की अब मुझे समाज से क्या मतलब मुझे तो एक से बढ़ कर एक नौकरी मिल जायेगी लेकिन बाबासाहेब तुम्हारी तरह स्वार्थी, गद्दार नही थे उन्होंने जीवन के अंतिम समय तक संघर्ष किया ताकि हम सम्मानजनक मनुष्य कहलाने लायक जीवन जी सके, आप ने कितने बार किसी ब्राह्मण के आगे नाक रगड़े हो किसी देवी देवता के आगे शीर्षासन किये हो? इमानदारी से खुद को जवाब दो और कितनी बार बाबासाहेब या दुसरे महापुरुषों के सम्मान में सर झुकाए हो? देवी देवता है या नही है मै इस विषय पर अभी चर्चा नही कर रहा हूँ किन्तु मुझे आप यह बताइए की आपका जन्म आपके माँ-बाप ने दिया उसके बाद संविधान के विशेष अधिकारों के कारण आप छाती चौड़ी कर के शान के साथ जी रहे हो तो आपका फर्ज यह नही बनता की आप माँ बाप और हमारे महापुरुषो को जाने, संविधान को पढ़े उसे सम्मान दे? आपको या पुरे शोषित वर्ग को आजादी दिलाने वालो के प्रति आपका हमारा कुछ तो नैतिक दायित्व है? यदि आपके जैसे पढ़े लिखे लोग मौन रहेंगे तो बेचारे अनपढ़ो से क्या उम्मीद की जायेगी? उतरप्रदेश के रहने वाले सैनिक जो देश की खातिर कुर्बान होगया उसका अंतिम संस्कार के लिए सवर्ण हिन्दुओ ने स्थान देने से मना कर दिए देश के लिए मर मिटने वाले की इज्जत नही है, लोग चाँद में घर बसना चाह रहे है और यह लोग अपने पूर्वज पेशवाओ की परम्परा मान रहे है.ऊना गुजरात में क्यों सरेआम बेगुनाहों को लोहे की राड से बेरहमी से मारा गया? जिन्दी गाय को माँ कहने वाले मृत गाय का अंतिम संस्कार क्यों नहीं करते? मरी गाय के चमड़े का उपयोग करने के लिए किसने मजबूर किया था? गाय माता है उसकी लाश से आपका लगाव क्यों नही रहता? घोड़ी तुम्हारी बहन है क्या? यदि कोई दूल्हा घोड़ी पर बैठ जाता है तुम्हारा खून क्यों खौलता है? लाखो बहन बेटियों का रोज बलत्कार होता है आशाराम जैसा हरामी धर्मगुरु बच्चियों का बलत्कार करता था तब नारी के सम्मान में धर्म के ठेकेदार क्यों नही आये? यह सब आँखे फाड़ कर देखने वाले किसी भी जाति धर्म के क्यों न हो वे सभी सभी इन्शान कहलाने लायक नहीं है जुर्म का विरोध जाति धर्म को ख्याल रख होता है तब यह मानो यह देश एक देश नही है अलग अलग कबिलो में बटा हुआ है इसे बाटने वाले मनु को आदर्श मानते है, आज दिल्ली में बुद्धिष्ट यूथ संगठन के युवा गुजरात में हुई बर्बर आतंकी घटना का विरोध कर रहे थे तो पुलिस की मौजूदगी में आरएसएस के लोग प्रदर्शनकारीयो को पीटने किसके इशारे पर गये? देश के सभी अनुसूचित जाति- जनजाति के युवा देखो यह अब जुर्म के खिलाफ आवाज भी उठाने नही दे रहे है पिछड़ा वर्ग तो सायद ज्योतिबाफुले और साहूजी महाराज को अपना महापुरुष नहीं मानता इसलिए मैंने उनको अहवाह्न नहीं किया, स्वतंत्र भारत में देश संविधान से चलता है की इनके मनुस्मृति से? अभी यह हाल है तो जब यह संविधान बदल देंगे तब क्या होगा? अच्छे दिन, राम राज्य यही है? इसके जिम्मेदार मनुवादी-ब्राह्मणवादी नहीं है, अनुसूचित जाति, जनजाति के कथित पढ़े लिखे लोग जो इनकी गुलामी करते है और इतिहास और महापुरुषों से अनजान है वही इन घटनाओं के लिए दोषी है क्योकि जो अपने बाप को बाप न कहे वह हरामी ही कहलाता है. लगातार हो रहे जुल्मोसितम पर यदि तुम्हारा खून नहीं खौलता तब आप मुर्दे हो तुम गुलाम हो. भरता रत्न बाबासाहेब ने कहा था जुल्म करने वाले से बड़ा अपराधी जुल्म सहन करने वाला होता है भगत सिंह ने २३ वर्ष की उम्र में देश के लिए हस्ते हस्ते अपनी जान दे दी थी उन्होंने कहा था भारत के लोग ईश्वरवादी है इसलिए सब कुछ भगवान भरोसे रहते है वे लोग नपुंशक है. आप को फ़ासी पर नहीं चढ़ना है न ही किसी से लड़ना है हम सब आखिर भारतीय ही तो है किन्तु आज आप जाति के नाम पर जुल्म पर कुछ नहीं बोलोगे तो देश टूट जायेगा, अंधविश्वास के खिलाफ आवाज नहीं उठाओगे तो देश बर्बाद हो जायेगा.
       यदि आप कुछ नहीं कर सकते तो हमारे मार्गदाताओ के संघर्ष उनके दिखाएँ मार्गो पर तो चल सकते हो, यह विचार सिर्फ सदियों से पीड़ित-शोषित समाज के युवक युवतियों के लिए लिखे गये है इस पर वही विचार प्रतिक्रियाँ दे जो शोषित वर्ग से हो अन्य वर्गो के युवक युवतियां मानवता पर विशवास रखते हो वे इन मानसिक गुलामो को गुलामी की जंजीरे तोड़ने में मदत करे.

मेरी बातो का तार्किक, तथ्यात्मक, एतिहासिक, परिक्षण करे कोई जरूरी नहीं की मैने जो लिखा है वह पूर्णत: सत्य हो. महापुरुषो के विचारों एंव वर्तमान परिवेश में घटित घटनाओं को आधार बना कर यह विश्लेषण आपके सामने लाया हूँ,


लेखक: सुरेश पासवान, राष्ट्रीय महासचिव-डब्लू एल बी एस आईटी एंव सोशल मिडिया संगठन

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