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बुद्ध की शिक्षाएँ आज और भी प्रासंगिक क्यों है!

ब्राह्मणवादी विचारधारा की सबसे बड़ी विरोधी दार्शनिक धारा थी गौतम बुद्ध की। ब्राह्मणवाद के विरूद्ध बुद्ध ने   ‘‘अस्थायित्व” का सिद्धांत प्रतिपादित किया। उनका विचार था कि सामाजिक उत्पादन और सामाजिक रिश्तों में निरंतर बदलाव आता रहता है। वे अंधश्रद्धा के हामी नहीं थे। वे मुक्ति की तलाश में तर्क और व्यक्तिगत प्रयासों की भूमिका पर ज़ोर देते थे। यह दिलचस्प है कि जहां ब्राह्मणवादी शूद्रों और महिलाओं को ज्ञान प्राप्ति के योग्य नहीं मानते थे और श्रेष्ठि वर्ग की भाषा संस्कृत का इस्तेमाल करते थे, वहीं बुद्ध का कहना था कि उनकी बताई राह सभी के लिए खुली है और वे आमजनों की भाषा पाली और प्राकृत में संवाद करते थे। उनके संघों के द्वार सभी जातियों और दोनों लिंगों के लिए खुले हुए थे। आत्मा और ब्रह्म पर बहस में पड़ने की बजाए उन्होंने अपना ध्यान दुनिया की समस्याओं पर केन्द्रित किया। बुद्ध का आष्टागिंक मार्ग था सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक, सम्यक कर्म, सम्यक जीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि।
इस आसानी से समझ में आने वाले संदेश को बड़ी संख्या में लोगों ने पसंद किया। यह श्रेष्ठि-केन्द्रित ब्राह्मणवादी विमर्ष से एकदम अलग था। वह नीची जातियों के लोगों को ऊँची जातियों के दमन से मुक्ति की राह दिखाता था और महिलाओं को यह बताता था कि उनकी सामाजिक स्थिति कैसे बेहतर बन सकती है। बुद्ध की शिक्षाओं का एक महत्वपूर्ण पहलू था प्रजातांत्रिक सिद्धांतों पर उनका ज़ोर। सामूहिक निर्णयों को बौद्ध दर्शन, समुदाय के अस्तित्व को बचाए रखने की गारंटी मानता है। उसके अनुसार ऐसे निर्णय समुदाय के सभी सदस्यों के हित में होते हैं। प्रजातांत्रिक सिद्धांत, सामाजिक न्याय और लैंगिक समानता बुद्ध की शिक्षाओं के भाग थे।

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