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मैं पूछना चाहता हूँ की लोहे की रॉड जब मेरे भाइयो पर गिर रही थी तब तुम्हे दर्द क्यों नही हुआ?

मैं पूछना चाहता हूँ की लोहे की रॉड जब मेरे भाइयो पर गिर रही थी तब तुम्हे दर्द क्यों नही हुआ?
जो SC,ST,OBC के मेरे दोस्त केनरा, मुजफ्फरनगर या कश्मीर मुद्दे पर देशभक्ति के नारे लगाते है संघियो के साथ, वे आज अपने समाज के भाईयो पर हुए इस क्रूरतम जातिवादी आतंकवाद के मुद्दे पर चुप क्यों है?
और वे समान्य वर्ग के मेरे दोस्त जो छाती ठोक कर आरक्षण का विरोध करते है और दलील देते है की अब जातिवाद खत्म हो गया पासवान जी आरक्षण भी खत्म हो जाना चाहिए।
मैं पूछना चाहता हूँ की लोहे की रॉड जब मेरे भाइयो पर गिर रही थी तब तुम्हे दर्द क्यों नही हुआ?
कथित गौ रक्षक आतंकवादियो का विरोध तुमने क्यों नही किया?
राष्ट्रवाद और भारत माता के नारे लगाने वाले अब मौन क्यों हो? यही है तुम्हारा राष्ट्रवाद? जहाँ मनुष्य की कोई कद्र नही तुम्हारी राष्ट्रभक्ति अल्पसंख्यको, और आरक्षण का विरोध करने तक सिमित है गाय-गाय चिल्लाने तक सिमित है, मोदी-मोदी चीखने तक सिमित है।
वीएचपी के नेता तोगड़िया कहते है की 2022 तक हिन्दू अल्पसंख्यक हो जायेगा। साध्वी -योगी जो खुद सन्तान पैदा नही करते वे हमे कहते है 10 बच्चे पैदा करो क्यों लोहे की रॉड से मरवाने के लिए? या मुस्लिमो से लड़ने के लिए? तुम क्यों नही पैदा करते सिर्फ दो बच्चे? हिन्दू कौन है बताइये जरा! मैं बताता हूँ की हिन्दू कौन है! जो तुम्हारी हाँ में हाँ मिलाये जो मोदी मोदी चिल्लाये, जो चुनावो के वक्त मन्दिर के लिए जय जय श्री राम चिल्लाये। धर्म के नाम पर मरने के लिए तैयार रहे और मन्दिर प्रवेश, जातिगत अन्याय पर चुप रहे आरक्षण विरोध तुम करो तब यह मौन रहे अर्थात तुम गर्व से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य बोलो और इन SC,ST,OBC को हिन्दू ?
मैं पूरी जवाबदारी और आप सभी शोषित वर्गो से पूछता हूँ कि आप लोगो को सम्मानजनक छाती चौड़ी करके जीने का हक आरएसएस वालो ने दिया? या बुद्ध, फुले, पेरियार, बिरसा- अम्बेडकर ने दिया?
या धर्म गुरुओं ने दिया?
जरा सी भी इन्शानियत बची हो तो मेरे प्रश्नो पर चिंतन करना नही तो आप स्वतन्त्र है जो करना है करिये।
गुजरात के अनुसूचित जाति के जागृत लोगो ने गाय का अंतिम संस्कार मना कर वो काम किया है जिसे बहुत पहले करना चाहिए था। बाबा साहब ने 14 अक्टूबर 1956 मे ही कह दिया था कि अगर इस काम से अछूत समझे जाते हैं तो हम ये काम नहीं करेंगे। किसी भी कीमत पर इन्हें ये काम बंद कर देना चाहिए था। इन गौ रक्षकों से कहना चाहिए कि तुम संभालो अपनी लाठी और अपनी गाय। क्रूरता और उस पर चुप्पी की भी हद होती है। शहर शहर हमारी गायें प्लास्टिक खा रही हैं। गौ चर यानी गायों के चरने की ज़मीन पर किनका क़ब्ज़ा है। ये अभी साफ हो जाए इस देश के सामने । आपको पता चलेगा कि इन्हीं गौ रक्षकों की राजनीतिक जमात के लोगों का क़ब्ज़ा है। गाय की ज़मीन खा गए। अब गाय के नाम पर दलितों को मार रहे हैं। बीफ के कारोबार में कौन कौन है कभी फुर्सत मिले तो यह जानकारी हमे दीजिये सरकार।
अनुसूचित जाति की पीठ पर आज़ाद भारत की मानसिक ग़ुलामी की लाठी -लोहे की रॉड बरस रही है। और इन्ही वर्गो के वोट लेकर संसद पहुँचने वाले लगभग 150 से अधिक सांसद अपनी-अपनी पार्टियो के वफादार कुत्ते बने हुए है? शर्म करो आज सिर्फ बहन मायावती अकेली संसद में समाजिक अन्याय के लिए जूझ रही है और ये भेड़िये उन्हें गाली दे रहे है। तुम फिर भी अपनी माँ बहन स्वरूप की बेइज्जती पर चुप हो।
इसलिए मैं तुम्हे पूना पैक्ट की नाजायज औलाद बोलता हूँ।


लेखक: सुरेश पासवान, महासचिव
वी लव बाबासाहेब आईटी एंव सोशल मिडिया संगठन
                                               

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