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श्रमिक अधिकारों के रक्षक तथा श्रमिकों के लिए सुरक्षा कवच : डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर

ऐतिहासिक तस्वीर

भारत के इतिहास में अगर सबसे पहले श्रमिकों को हक देने का किसी ने कार्य किया है तो बाबसाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने किया है। इसके पहले श्रमिकों पर अंतहीन अत्याचार होता था।

 12 घंटे, 15 घंटे, 18 घंटे तक उनसे काम लिया जाता था, मगर बाबासाहब ने संविधान में एक प्रावधान किया कि उनके लिए नियम बनाए और उनके हक के लिए बाबासाहब ने संविधान के ज़रिये जो कार्य किया जिससे पूरे देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व बाबासाहब के सामने नतमस्तक है।

डॉ . बाबा साहब अम्बेडकर के इस पहलू को हमारे भारतीय इतिहासकार और मजदूरों के समर्थक लोग न जाने क्यों दरकिनार करते आये हैं जबकी मज़दूर वर्ग के लिए की गई उनकी कई पहलकदमियां भारत के मजदूर आंदोलन के लिए बेमिसाल हैं। विदेश से अपनी पढ़ाई करके आने के बाद उन्होंने अपने काम की शुरुआत मजदूरों के लिए काम करने से की। अम्बेडकर ने 1936 में ‘इंडिपेन्डेंट लेबर पार्टी’ की स्थापना की। इस पार्टी का उदघोषणा पत्र  मजदूरों, किसानों, अनुसूचित जातियों और निम्न मध्य वर्ग के अधिकारों की हिमायत करने वाला घोषणापत्र था।

डॉ. अम्बेडकर का मानना था कि भारत में मजदूर वर्ग में अनुसूचित जाति एक बड़ी तादात में शामिल हैं। इस वजह से मजदूरों के बीच भेद-भाव की खाई मौजूद है। मजदूर वर्ग के संघर्ष और जाति के खात्मे के संबंध में जाति आधारित भारतीय समाज की संरचना के बारे में उन्होंने कहा था कि वर्ण व्यवस्था केवल श्रम का ही विभाजन नहीं है यह श्रमिकों का भी विभाजन है। उनका मानना था कि अनुसूचित जातियों को भी मजदूर वर्ग के रूप में एकत्रित होना चाहिए। मगर ये एकता मजदूरों के बीच मौजूद जाति की खाई को मिटा कर ही हो सकती है। जाति और वर्ग के सामंजस्य के सम्बन्ध में बाबा साहब की यह सोच बेहद क्रांतिकारी है क्योंकि यह भारतीय समाज की सामाजिक संरचना की सही और वास्तविक समझ की ओर ले जाने वाली कोशिश है।

डॉ. अम्बेडकर का मानना था कि भारत में मजदूरों के दो बड़े दुशमन हैं-पहला ब्राह्मणवाद और दूसरा पूंजीवाद। ब्रह्मणवाद से उनका तात्पर्य स्वतंत्रता, समता और भाईचारे  की भावना को नकारने वाली विचारधारा से है।

बाबा साहब ट्रेड यूनियन के घनघोर समर्थक थे। उनकी राय में भारत में ट्रेड यूनियन की सबसे ज्यादा जरूरत है मगर वे मानते थे कि भारत का ट्रेड यूनियन अपना मुख्य उद्देश्य खो चुका है। उनका मानना था की जब तक ट्रेड यूनियनवाद सरकार पर कब्जा करने को अपना लक्ष्य नहीं बनाता तब तक ट्रेड यूनियनें बहुत ही कम मज़दूरों का भला कर पाएंगी और ट्रेड यूनियन नेताओं की लगातार झगड़ेबाजी का अड्डा बनी रहेंगी।


डॉ. अम्बेडकर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को स्वतंत्रता का अधिकार  माना और कहा कि मजदूरों को हड़ताल का अधिकार न देने का अर्थ है मजदूरों से उनकी इच्छा के विरुद्ध काम लेना और उन्हें गुलाम बना देना। 1938 में जब बम्बई प्रांत की सरकार मजदूरों के हड़ताल के अधिकार के विरूद्ध ट्रेड डिस्प्यूट बिल पास करना चाह रही थी तब बाबा साहेब ने खुलकर इसका विरोध किया। 1942 में तत्कालीन वायसराय ने अम्बेडकर को अपनी कार्यकारिणी के लिए नियुक्त किया और उन्हें श्रम विभाग का कार्य सौंपा गया।

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बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने 1946 में श्रम सदस्य की हैसियत से केंन्द्रीय असेम्बली में न्यूनतम मजदूरी निर्धारण सम्बन्धी एक बिल पेश किया जो 1948 में जाकर ‘न्यूनतम मजदूरी कानून’ बना। उन्होंने ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट में सशोधन करके सभी यूनियनों को मान्यता देने की आवश्यक्ता पर जोर दिया। 1946 में उन्होंने लेबर ब्यूरो की स्थापना भी की।

बहुत ही कम लोग इस बात को जानते हैं कि अम्बेडकर भारत में सफाई कामगारों के संगठित आंदोलन के जनक थे। उन्होंने बम्बई और दिल्ली में सफाई कर्मचारियों के कई संगठन स्थापित किए। बम्बई म्युनिसिपल कामगार यूनियन की स्थापना बाबा साहब ने ही की थी

डॉ. अम्बेडकर नए भारत के निर्माण में मजदूरों की महती भूमिका को स्वीकार करते थे। उनका मानना था कि भारत को स्वराज्य मिल जाना ही काफी नहीं है बल्कि यह स्वराज्य शोषितों, मजदूरों और पिछड़ों को मिलना चाहिए। इसके लिए मजदूरों को अपनी भूमिका निभानी होगी।
माला दास, राष्ट्रीय अध्यक्ष ( वी लव बाबासाहेब आईटी एंव सोशल मिडिया संगठन )

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