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बाबासाहेब को भूल कर घण्टा बजाने वाले ही जूते खाते है

जो धर्म ग्रंथों के आधार पर हमे शुद्र घोषित करते है,
वह हम लोगें को दिशाहीन करने का, दिशाभ्रमित करने का, मन और मस्तिष्क को गलत दिशा मेें ले जाने का, उनकी बुध्दी को नियंत्रित करके मानसिक गुलाम बनाने का हमेशा प्रयास करते रहते है.
पर्व, त्यौहार, पूजा-पाठ के नाम पर हमे उलझा कर रखा जाता है हम उत्सव के नाम पर स्वंय की बुद्धि को उन्ही षड्यंत्रकारियो के समक्ष गिरवी रख देते है जो हमारा शोषण करते आये है।
शिक्षा, रोजगार, व्यपार, के अधिकार दिलाने वाले महापुरुषो के इतिहास को काली कोठरी में बन्द रखा गया है ताकि आप इन बेईमानो, षड्यंत्रकारियो, मनुवादियों के खिलाफ खड़े न हो जाओं।
हमारा आपसे आग्रह है आप लोग जो भी परम्परायें मान रहे हो उस पर चिंतन करिये, आपको शुद्र, अछूत, नीच इस परम्परा ने क्यों कहा? चिंतन कीजिए!
अब यह न कहना की हमे लोग नीच या शुद्र नही बोलते..
वह धार्मिक मान्यताओ, धर्म शास्त्रो को मिथ्या नही मानते है वह संवैधानिक अधिकारो के कारण खुलेआम नीच नही बोलते फिर भी यदा कदा यह अपनी अभिव्यक्ति दे ही देते है जैसे: शँकराचार्य, मधु मिश्रा, वीके सिंह, दयाशंकर सिंह, जैसे कई नाम है जिन्होंने SC,ST,OBC,Converted minorities को धर्म शास्त्रो सम्मत बयान जाहिर कर चुके है।
इसलिए आप शिक्षित हो तो हमारी समाजिक, धार्मिक आर्थिक एंव राजनैतिक गुलामी से मुक्त करने वाले महापुरुषो के कठिन संघर्षो, कुर्बानियो को जानिये अन्यथा आप लोग शोषण का शिकार होते रहोगे।

ज्योतिबाफुले की क्रांतिकारी पुस्तक गुलामगिरी सामजिक परिवर्तन की चाभी कहे तो अतिशयोक्ति नही होगी महात्मा फुले के चिंतन के केंद्र में मुख्य रूप से धर्म और जाति की अवधारणा है. वे कभी भी हिंदू धर्म शब्द का प्रयोग नहीं करते. वे उसे ब्राह्मणवाद के नाम से ही संबोधित करते हैं. उनका विश्वास था कि अपने एकाधिकार को स्थापित करने के उद्देश्य से ही ब्राह्मणों ने श्रुति और स्मृति का आविष्कार किया था. इन्हीं ग्रंथों के जरिये ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था को दैवी रूप देने की कोशिश की. फुले को विश्वास था कि ब्राह्मणवाद एक ऐसी धार्मिक व्यवस्था थी, जो ब्राह्मणों की प्रभुता की उच्चता को बौद्घिक और तार्किक आधार देने के लिए बनायी गयी थी. उनका हमला ब्राह्मण वर्चस्ववादी दर्शन पर होता था, उनका कहना था कि ब्राह्मणवाद के इतिहास पर गौर करें तो समझ में आ जाएगा कि यह शोषण करने के उद्देश्य से हजारों वर्षों में विकसित की गयी व्यवस्था है. इसमें कुछ भी पवित्र या दैवी नहीं है.

पेरियार के क्रांतिकारी विचार:
ब्राहमण आपको भगवान के नाम पर मुर्ख बनाकर अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है. और स्वयं आरामदायक जीवन जी रहा है, तथा तुम्हे अछूत कहकर निंदा करता है. देवता की प्रार्थना करने के लिए दलाली करता है. मै इस दलाली की निदा करता हू. और आपको भी सावधान करता हूँ की ऐसे ब्राह्मणों का विस्वास मत करो, उन देवताओ को नष्ट कर दो जो तुम्हे शुद्र कहे , उस देवता कि पूजा करो जो वास्तव में दयालु भला हो और बौद्धगम्य है. *ब्राहमणों के पैरों में क्यों गिरना ?क्या ये मंदिर है ?? क्या ये त्यौहार है ..??? नही ,ये सब कुछ भी नही है. हमें बुद्धिमान व्यक्ति कि तरह व्यवहार करना चाहिए यही प्रार्थना का सार है.
 
भारत रत्न, विश्वविभूति बाबासाहेब अम्बेडकर के विचार आज भी प्रासंगिक है "जाति व्यवस्था के अंत का मतलब अंतर्जातीय भोज या अंतर्जातीय विवाह नही है बल्कि उन धार्मिक धारणाओं का नाश है जिन पर जाति व्यवस्था टिकी है।

इसलिए मैं कहता हूँ कि "जो बाबासाहेब और हमारे महापुरुषो को भूल कर मन्दिर जाते है घण्टा बजाते है वही जूते खाते है"
लेख: सुरेश पासवान, महासचिव-वी लव बाबासाहेब

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2 comments:

  1. Ekdam satik aur bhavishya suchak bate likhi hai jinhe hame samazna hoga tatha anupalan bhi karna hoga.

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    1. दीप जी आपने गम्भीरता पढ़ा उसके लिए साधुवाद

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