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सोशल मिडिया में जेएनयू छात्र संघ चुनाव में वामपंथी गठबंधन की जीत से ज्यादा चर्चा अम्बेडकरवादी संगठन की

विश्व प्रसिद्द बीबीसी समाचार एजेंसी ने भी BAPSA की तारीफ की है :
बिरसा आबंडेकर फूले स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन(बापसा) के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार राहुल सोमपिम्पले ने मोहित पाण्डे का आख़िरी-आख़िरी तक पीछा किया और सिर्फ़ 409 वोटों से हारे.
बापसा के दूसरे उम्मीदवारों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया. बापसा ख़ासकर दलितों, आंबेडकरवादियों और मुस्लिम मतदाताओं का एक गठबंधन है. बापसा केवल दो साल पहले बनी है, इस लिहाज़ से उनका प्रदर्शन काफ़ी शानदार कहा जा सकता है.

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मण्डल ने अपनी प्रतिक्रियां में लिखा है "हां जी BAPSA वालों,
AISA +SFI+AISF+DAF+DSU +पता नहीं किन किन संगठनों की सम्मिलित ताकत से हारकर कैसा महसूस हो रहा है?
RSS के बगलबच्चा संगठन ABVP को तीसरे स्थान पर धकेलकर तो बहुत खुश होगे BAPSA वालों?
अविनाश गाडवे
पार्टी तो बनती है उस संगठन के लिए जिसका जन्म 2014 को बिरसा मुंडा की स्मृति के दिन शुरू हुआ.



पूर्व पत्रकार एंव WLBS के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अविनाश गाडवे ने फेसबुक पर लिखा है कि "JNU में लेफ्ट जीत भले ही गई हो पर बहिष्कृत समाज को प्रतिनिधित्व न देकर वो हार गई हैं "

 अम्बेडकरवादी विचारक सुरेश पासवान ने अपने वाल पर लिखा है: 
राष्ट्रीय स्तर पर अम्बेडकरवादी छात्र संगठनो का गठबंधन होना चाहिए क्योकि जेएनयू में अकेले #BAPSA ने फर्जी राष्ट्रवादियो को धूल चटाई है।
लेफ्ट छात्र संगठनो को भी लेफ्ट-राईट करना पड़ा!
BAPSA, Ambedkar Students Association, Bahujan Students Front, United OBC Forum, Ambedkar Periar Study circle, DASFI यह सभी एक मंच पर आये.
सुरेश पासवान, राष्ट्रीय महासचिव वी लव बाबासाहेब समाजिक संगठन
सोशल मीडिया का चर्चित अम्बेडकरवादी संगठन वी लव बाबासाहेब के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विवेक भारती ने #BAPSA को उत्साहित करने के लिए बधाई दे डाली उन्होंने लिखा "JANU में #BAPSA का कब्ज़ा सोचो अगर ये मॉडल पुरे देश में लागु हो गया तो सरकार किसकी?
मंगलकामनाएँ #राहुलपुनाराम #welovebabasaheb
 विवेक भारती राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वी लव बाबासाहेब समाजिक संगठन

 

अम्बेडकरवादी विचारक वेद प्रकाश ने वामपंथियो को मनुवादी की उपाधि दी; JNU छात्र संघ चुनाव में वामपंथियों ने एक भी दलित-आदिवासी उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा। मतलब, जहां संवैधानिक आरक्षण नहीं है। वहां ये वामपंथी मनुस्मृति वाला आरक्षण लागू कर देते हैं। क्या ये लड़ेंगे ब्राह्मणवाद से..?

संजीव सिंह

लीगल एग्जीक्यूटिव संजीव सिंह ने वामपंथीओ की जमकर आलोचना की है "भारत में या तो वामपंथ सही हाथों में नहीं है या जिन हाथों में वामपंथ है वह सही नहीं है.किसी भी वामपंथी क्षेत्र में जात-पात समाप्त नहीं हुआ| वामपंथ सिर्फ आर्थिक विषमता को केंद्र में रखता है जो भारत की परिस्थितियों में उपयुक्त नहीं..

कड़वा है पर सच है...

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