सवित्रीफुले की याद में हम मनाएँगे शिक्षक दिवस
माँ सवित्रिफुले देश की महानायिका
भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, एक समाज सुधारिका एवं मराठी कवयित्री. उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं शिक्षा के लिए बहुत से कार्य किए. उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है. 1851 में उन्होंने सभी वर्गो, धर्मो एंव (अछूत) आज का अनुसूचित जाति बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।
एक नजर में माँ सावित्रीफुले का संक्षिप्त परिचय:
माता फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था. इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था. सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था।
भारत ने देश की प्रथम महिला अध्यापिका को क्यों भुला दिया?
माता फुले भारत के प्रथम बालिका विद्यालय की प्रथम प्रिंसिपल(प्रधानाध्यापिका) और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं.
ज्योतिबा फुले को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। उनको महिलाओं और अनुसूचित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है।
ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबाफुले के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे।
सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और शोषित-पीड़ित महिलाओं को शिक्षित बनाना. वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता है.
माँ सवित्रीफुले किसके लिए अपमानित हुई?
सामाजिक मुश्किलें माँ सवित्रीफुले को बहुत झेलने पड़े
वे स्कूल जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे, उन पर गंदगी फेंक देते थे, आज से 165 साल पहले बालिकाओं के लिये स्कूल खोलना ये सोच कर भी हृदय कांप, सिंहर जाता है, सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा देश में एक अकेला बालिका विद्यालय.
सावित्री बाई फुले पुरे देश की महानायिका के रूप में देखा जाना चाहिए. उन्होंने प्रत्येक धर्म, जाति-वर्ग जिसमे ब्राह्मण महिलाएँ भी शामिल थी उनके लिये उन्होंने काम किया. जब सावित्रीबाई पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे इससे बचने के लिए एक छाता और एक साड़ी लेकर चलती थीं , और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं. अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।
प्रथम विद्यालय की स्थापना
1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की. एक वर्ष में सावित्रीबाई और ज्योतिबा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए. तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया. एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती.
लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी. सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने के लिए आधारशिला स्थापित किया, वह भी पुणे जैसे तत्कालीन रूढ़िवादी शहर में।
निर्वाण(मृत्यु)
10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण माँ सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया. प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं, एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी यह भयानक रोग लग गया, और इसी कारण से उनकी मृत्यु हो गई.
सच्चे महानायकों के संघर्षो जानिए
जिस महानियका ने समाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिणक क्रान्ति की नीव भारत में रखी जिसके कारण आज आधुनिक भारत में महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्र में सफल हो रही है जैसे राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, राज्यपाल, मुख्यमन्त्री, सांसद, मंत्री, विधायक, सरपंच आदि राजनैतिक पदों के अतिरिक्त शिक्षा, प्रशासन, विज्ञान और खेल में देश का गौरव बढ़ा रही इसका ज्वलन्त उदाहरण ओलम्पिक खेलोे में भारत शर्मसार होने से बचा कर इतिहास रचने वाली सिंधु, साक्षी ने भारत के कथित धर्म के ठेकेदारो को आईना दिखा दिया, इसका श्रेय हमे सिर्फ और सिर्फ ज्योतिबाफुले- सावित्री फुले एंव भारतीय संविधान को ही देना चाहिए किन्तु दुखद इस देश में ऐसे क्रान्तिकारियो को षड्यंत्र के तहत छुपाया जाता रहा है।
देश के प्रत्येक विद्यालयो में माँ सावित्री को नजर अंदाज करके धर्म विशेष के देवी-देवताओ को पूजा जाता है जबकि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है, विद्यालय धर्म स्थल नही है यह सोच विकसित करना होगा।
इसलिए माता तेरी याद में हम शिक्षक दिवस मनाएंगे क्या आप भी मनाएँगे?
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सावित्रीबाई फुले (3 जनवरी 1831 – 10 मार्च 1897) |
एक नजर में माँ सावित्रीफुले का संक्षिप्त परिचय:
माता फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था. इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था. सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था।
भारत ने देश की प्रथम महिला अध्यापिका को क्यों भुला दिया?
माता फुले भारत के प्रथम बालिका विद्यालय की प्रथम प्रिंसिपल(प्रधानाध्यापिका) और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं.
ज्योतिबा फुले को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। उनको महिलाओं और अनुसूचित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है।
ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबाफुले के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे।
सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और शोषित-पीड़ित महिलाओं को शिक्षित बनाना. वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता है.
माँ सवित्रीफुले किसके लिए अपमानित हुई?
शिक्षा की असली देवी को देश ने क्यों भुला दिया? |
वे स्कूल जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे, उन पर गंदगी फेंक देते थे, आज से 165 साल पहले बालिकाओं के लिये स्कूल खोलना ये सोच कर भी हृदय कांप, सिंहर जाता है, सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा देश में एक अकेला बालिका विद्यालय.
सावित्री बाई फुले पुरे देश की महानायिका के रूप में देखा जाना चाहिए. उन्होंने प्रत्येक धर्म, जाति-वर्ग जिसमे ब्राह्मण महिलाएँ भी शामिल थी उनके लिये उन्होंने काम किया. जब सावित्रीबाई पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे इससे बचने के लिए एक छाता और एक साड़ी लेकर चलती थीं , और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं. अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।
प्रथम विद्यालय की स्थापना
1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की. एक वर्ष में सावित्रीबाई और ज्योतिबा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए. तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया. एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती.
लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी. सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने के लिए आधारशिला स्थापित किया, वह भी पुणे जैसे तत्कालीन रूढ़िवादी शहर में।
निर्वाण(मृत्यु)
10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण माँ सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया. प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं, एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी यह भयानक रोग लग गया, और इसी कारण से उनकी मृत्यु हो गई.
सच्चे महानायकों के संघर्षो जानिए
जिस महानियका ने समाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिणक क्रान्ति की नीव भारत में रखी जिसके कारण आज आधुनिक भारत में महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्र में सफल हो रही है जैसे राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, राज्यपाल, मुख्यमन्त्री, सांसद, मंत्री, विधायक, सरपंच आदि राजनैतिक पदों के अतिरिक्त शिक्षा, प्रशासन, विज्ञान और खेल में देश का गौरव बढ़ा रही इसका ज्वलन्त उदाहरण ओलम्पिक खेलोे में भारत शर्मसार होने से बचा कर इतिहास रचने वाली सिंधु, साक्षी ने भारत के कथित धर्म के ठेकेदारो को आईना दिखा दिया, इसका श्रेय हमे सिर्फ और सिर्फ ज्योतिबाफुले- सावित्री फुले एंव भारतीय संविधान को ही देना चाहिए किन्तु दुखद इस देश में ऐसे क्रान्तिकारियो को षड्यंत्र के तहत छुपाया जाता रहा है।
देश के प्रत्येक विद्यालयो में माँ सावित्री को नजर अंदाज करके धर्म विशेष के देवी-देवताओ को पूजा जाता है जबकि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है, विद्यालय धर्म स्थल नही है यह सोच विकसित करना होगा।
इसलिए माता तेरी याद में हम शिक्षक दिवस मनाएंगे क्या आप भी मनाएँगे?
लेखिका: माला दास राष्ट्रीय अध्यक्ष, वी लव बाबासाहेब आईटी एंव सोशल मीडिया संगठन http://www.facebook.com/welovebabasaheb |
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