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हमारे भारत में भ्रष्ट नेताओं, अभिनेताओं और जजों को सजा नहीं होती- सूरज कुमार बौद्ध

अन्याय पर टिकी हुई न्याय व्यवस्था

पाकिस्तान की सर्वोच्च न्यायपालिका द्वारा तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री (वजीर-ए-आजम) रहे नवाज शरीफ को अयोग्य करार दिया जाना पाकिस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अदालती निष्पक्षता की दृष्टि से एक मिसाल है। अमूमन पाकिस्तान की लोक वितरण प्रणाली तथा सरकारी संस्थाएं अंतर्राष्ट्रीय पारदर्शिता की मानक में बहुत पीछे होते हैं। पिछले शुक्रवार को पाकिस्तान की सर्वोच्च न्यायालय की पांच जजों की खंडपीठ ने बंद कोर्ट रूम से अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के जज एजाज अफजल अपने आदेश में कहते हैं कि "मियां नवाज शरीफ अपने घोषित आय का झूठा विवरण दिए हैं। नवाज शरीफ संसद के एक ईमानदार सदस्य बने रहने के लायक नहीं है। इसलिए उन्हें प्रधानमंत्री पद पर बने रहने से अयोग्य करार दिया जाता है।"

सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले का पाकिस्तान सहित पूरी दुनिया ने किया स्वागत

सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस ऐतिहासिक फैसले को सुनाए जाने पर पाकिस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में क्रिया प्रतिक्रिया का दौर चल पड़ता है। पूर्व क्रिकेटर तथा वर्तमान में विपक्ष विपक्षी नेता इमरान खान कहते हैं कि "अदालत के इस फैसले से पाकिस्तान की जीत हुई है। आमतौर पर मुल्क में दो तरह के कायदे हैं, एक कमजोर व गरीब के लिए और दूसरा ताकतवर व अमीर के लिए। लेकिन अदालत के इस फैसले ने इस परिपाटी को तोड़ दिया है।" पाकिस्तान की अवाम उत्साह से लबरेज है। स्वयं नवाज शरीफ के समर्थक भी इस ऐतिहासिक फैसले से आश्चर्यचकित हैं। नवाज शरीफ अपने पद से इस्तीफा दे दिए हैं लेकिन वह अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को अभी भी नकार रहे हैं। फिलहाल नवाज शरीफ कुछ भी कहें लेकिन पाकिस्तान के सर्वोच्च अदालत के इस फैसले से उनका राजनीतिक भविष्य समाप्त हो चुका है।

क्या है पनामा पेपर्स लीक मामला?
ज्ञातव्य है कि पनामा पेपर्स पनामा की कंपनी मोसेक फोनसेका द्वारा इकट्ठा किया हुआ 1 करोड़ 15 लाख गुप्त फाइलों का भंडार है। इनमें कुल 2,14,000 कंपनियों से सम्बन्धित जानकारियां है। इसमें उस कंपनी के निर्देशक आदि की जानकारी भी है। पिछले साल मई 2016 में पनामा पेपर्स लीक की खबर पूरी दुनिया में तहलका मचा देती है। अमेरिका स्थित खोजी पत्रकारों की अन्तराष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल कॉन्सोर्टियम ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) के नेतृत्व में दुनिया के 78 देशों के 107 मीडिया संस्थानों के 350 से ज्यादा पत्रकारों ने पनामा पेपर्स मामले से जुड़े दस्तावेजों का एक साल तक अध्ययन किया। उसके बाद यह खुलासा हुआ। आईसीआईजे को किसी अज्ञात सूत्र ने इन दस्‍तावेजों को उपलब्‍ध कराया था।

भारत सहित दुनिया की अनेक हस्तियां कटघरे में...
पनामा पेपर्स खुलासे में करीब 450 भारतीय फ़िल्मी हस्तियों, उद्योगपतियों तथा नेताओं का भी नाम सामने आया है जिन्होंने टैक्स चोरी और काला धन सफेद करने के लिए टैक्स हैवन माने जाने वाले देशों में धन का निवेश किया। इनमें से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह, अमिताभ बच्चन और उनकी बहू ऐश्वर्या राय बच्चन, अजय देवगन, डीएलफ के मालिक केपी सिंह, गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी जैसे बहुतों नाम शामिल हैं। विदेशों में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के करीबियों, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ (दोषी करार), मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक, सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद, पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत बेनजीर भुट्टो, लीबिया के पूर्व शासक कर्नल गद्दाफी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के परिवार समेत कई हस्तियों के नाम हैं।

भारत में पनामा पेपर्स के आरोपी बनें सरकारी ब्रांड एंबेसडर

भारत दुनिया का एक अजूबा देश है। यहां पर चोर लुटेरे और बेईमान नेताओं को सजा नहीं होती है। कानून की पेचीदगियों में गुल्ली डंडा खेलते हुए भारत की न्याय व्यवस्था जातिवाद के समंदर में गोते लगाते हुए नजर आती है।  जिस पनामा पेपर्स लीक मामले में पाकिस्तानी अदालत ने पाकिस्तानी वजीरे आजम तक को नहीं बख्शा उसी पनामा पेपर्स खुलासे में शामिल भारतीय हस्तियाँ मौजमस्ती की जिंदगी जी रहे हैं। हद तो तब हो जाती है जब पनामा पेपर्स खुलासे में नामित टैक्स चोर आरोपी को सरकारी योजनाओं का ब्रांड अंबेसडर बनाया जाता है। अगर पनामा पेपर्स लीक में मायावती या लालू प्रसाद यादव का नाम होता तो यह बिकाऊ मीडिया सुबह शाम नैतिकता की राग अलापती रहती। लेकिन अडानी, अमिताभ, रमन सिंह, अजय देवगन जैसों पर खामोश है।

पाकिस्तानी अदालत का फैसला भारतीय न्यायपालिका के लिए एक सीख।
मैं पाकिस्तानी अदालत के निष्पक्षता को सलाम करता हूं। भारत में अदालतों में पंडित पुरोहित लोग बैठे हैं। भारत के जज "मोर सेक्स नहीं करते" का पाठ पढ़ाते हैं। यहां पर बलात्कारी सरेआम घूमते हैं लेकिन आंदोलनकारियों को तुरंत जेल में डाल दिया जाता है। यहां स्वघोषित ऊंची जाति की लड़की तथा  नीचे जाति के लड़के प्यार किए जाने पर  उनकी हत्या कर दी जाती है। प्रेमी जोड़ों को सरेआम नंगा घुमाया जाता है पर कुछ नहीं होता है। यहां भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हुए जज को जातीय मानसिकता से ग्रस्त जजों द्वारा अदालत की अवमानना का दोषी करार देकर जेल में डाल दिया जाता है लेकिन ओपी मिश्रा जैसे रिश्वतखोर सवर्ण जजों को कोई सजा नहीं होती है। रोहित वेमुला के हत्यारे खुलेआम घूम रहे हैं, सहारनपुर के असली दंगाई खुलेआम घूम रहे हैं। अखलाख और पहलु खान के हत्यारों का कानून कुछ नहीं कर पा रही है। ऊना उत्पीड़न कांड के पीड़ित आज भी इन्साफ को तरस रहे हैं। हाल में ही एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें भीड़ प्रेमी जोड़े को नंगा करके ढ़ोल नगाड़े बजाते हुए सड़क पर घुमा रही है। मीडिया ऐसे खबरें दिखाने की जरूरत नहीं समझती है। हम नेताओं को क्या कहें भारत में न्यायाधीश भी जांच प्रक्रिया से भागते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायपालिका यह मानकर बैठी है कि सवर्ण न्यायाधीश कभी अपराधी नहीं हो सकते हैं। खैर श्रृंखला बहुत लंबी है। सच्चाई पर किसी देश का एकाधिकार नहीं होता है। पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रधानमंत्री को अयोग्य करार देना सच में एक ऐतिहासिक फैसला है। हमारे भारत में भ्रष्ट नेताओं, अभिनेताओं और जजों को सजा नहीं होती है। काश भारत की न्यायपालिका पाकिस्तान से कुछ सीख पाती !
द्वारा- सूरज कुमार बौद्ध
(लेखक भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हैं।)


1 comment:

  1. 🇮🇳🇮🇳जय भीम 🇮🇳🇮🇳
    🇮🇳🇮🇳जय भारत 🇮🇳🇮🇳

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