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हिंदू मुस्लिम कर-करके दंगा कराने वालों, यहां पर खूब शांति है, बहरे नहीं हैं हम

सत्ता की सफारी पर सवार होकर जब कोई  तानाशाह शासक सच पर पाबंदी लगाता है तो उसके विरोध में जज्बाती चेहरों का सामने आ जाना तय हो जाता है क्योंकि जब भी किसी को हद से ज्यादा डराया जाता है तो उसके दिल में डर खत्म हो जाता है।

ऐसे ही एक क्रांतिकारी चेहरे का नाम रोहित वेमुला था जिसकी संस्थानिक हत्या कर दी गई। चूंकि रोहित वेमुला को आत्महत्या तक ले जाने में मजबूर करने में आंध्र प्रदेश के विधायक, हैदराबाद विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर तथा केंद्रीय मंत्री तक का नाम आया था इसलिए रोहित वेमुला द्वारा आत्महत्या किए जाने की निष्पक्ष जांच ना होकर जांच इस बात पर सिमटती हुई नजर आई की रोहित वेमुला दलित था या नहीं। हुकूमत द्वारा आम अवाम पर आए दिन ढाए जा रहे ज़ुल्म और ज़्यादती के खिलाफ बने आंदोलन के प्रतीक रोहित वेमुला को समर्पित करते हुए पढ़िए सामाजिक क्रांतिकारी चिंतक सूरज कुमार बौद्ध की रचना "अभी मरे नहीं हैं हम"....


      "अभी मरे नहीं हैं हम"
उनसे कह दो कि अभी डरे नहीं है हम,
हारे हैं जरूर मगर मरे नहीं हैं हम।

बहुत जुनून है मुझमें इस नाइंसाफी के खिलाफ,
सर फिरा है मगर सरफिरे नहीं हैं हम...

बड़ी ऊंची पहाड़ है, है फ़तह बहुत मुश्किल, अभी से हार क्यों माने अगर चढ़े नहीं हैं हम।

तेरे भड़काने से फिरकापरस्त हो जाएं?
तुम्हारी तरह ज़मीर से गिरे नहीं हैं हम।

हिंदू मुस्लिम कर-करके दंगा कराने वालों,
यहां पर खूब शांति है, बहरे नहीं हैं हम।

तेरी सियासत ही मुल्क का माहौल बिगाड़ रहा,
पर हमारी जंग जारी है अभी ठहरे नहीं है हम।

दो कौड़ी के दाम से मेरा जमीर मत खरीदो,
अमानत में खयानत कर बिके नहीं हैं हम।

जम्हूरियत में तानाशाही की चोट ठीक नहीं,
कल भी इंकलाबी थे, अभी सुधरे नहीं हैं हम।

एक रोहित के मौत से हमे खामोश मत समझो,
अब हजार रोहित निखरेंगे बिखरे नहीं हैं हम।

उनसे कह दो कि अभी डरे नहीं है हम,
हारे हैं जरूर मगर मरे नहीं हैं हम।

द्वारा- सूरज कुमार बौद्ध
(रचनाकार भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हैं।)


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