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अमित शाह ने असंवैधानिक शब्द का इस्तेमाल कर बिहार राज्यपाल जी का अपमान किया?

देश के संवैधानिक पद पर बैठे महाअनुभवी सम्मानीय व्यक्ति अगर गैर संवैधानिक शब्द का प्रयोग करे तो (We The People Of India) भारत के नागरिकों का फर्ज है कि उसका प्रतिकार करे , क्योंकि संवैधानिक पद पर बैठे लोगों की वाणी सुन कर देश की जनता अपने भारत को महसूस करती है।

देखिये यह वीडियो एक अधिवक्ता ने इस विषय पर क्या कहा;

19 जून 2017 यानि सिर्फ 4 दिन पहले बिहार के महामहिम राज्यपाल जी के लिए बीजेपी के अध्यक्ष ने दलित शब्द का इस्तेमाल किया|
पूरा भारत स्तब्ध है कि महामहिम राज्यपाल जी को भी दलित शब्द के तराजू में तौल दिया गया।

क्या संवैधानिक पद पर बैठे लोग संवैधानिक आयोग का फैसला नहीं मानते? अनुसूचित जाति आयोग ने 2008 को ही दलित शब्द पर आपत्ति जताते हुए असंवैधानिक करार दिया।
माननीय मुम्बई उच्च न्यायालय में भी दलित शब्द का मामला विचाराधीन है।

फिर अमित शाह ने असंवैधानिक शब्दों का इस्तेमाल बिहार राज्यपाल जी के लिए क्यों किया?
क्या दलित शब्द सिर्फ वोट की राजनीति करने भर के लिए है?
ज्ञातव्य हो कि ;
Koयाचिकाकर्ता के अनुसार दलित शब्द आपत्तिजनक और असंवैधानिक है। इसके प्रयोग से जातिवाद और भेदभाव झलकता है। खुद बाबा साहब आंबेडकर ‘दलित’ शब्द के प्रयोग के विरोध में थे।
अनुसूचित जाति आयोग ने ‘दलित’ शब्द के प्रयोग को जातिवाचक और आक्षेपजनक माना है।
अपने ज्ञापन में याचिकाकर्ता ने लिखा है कि दलित शब्द के प्रयोग से संविधान के आर्टिकल 14,15,16,17,18,19,21, 341 का उल्लंघन होता है।
याचिकाकर्ता की अपील को माननीय न्यायालय में 29 अगस्त 2016 को सुनवाई हुई राज्य सरकार के अलावा इस मामले में याचिकाकर्ता ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और केंद्रीय सामाजिक न्याय व आधिकारिता विभाग को प्रतिवादी बनाया।
इस सुनवाई के बाद मुंबई उच्च न्यायलय की नागपुर खंडपीठ की भूषण धर्माधिकारी और अतुल चांदुरकर की दोहरी पीठ ने इस मुद्दे पर सरकार से तीन हफ्ते में अपना पक्ष रखने का आदेश दिया गया । लेकिन सरकार ने समय पर अपना पक्ष नहीं रख सकी।
नाराज हाईकोर्ट प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, केंद्रीय सामाजिक न्याय व आधिकारिता विभाग और राज्य सरकार को दो सप्ताह में जवाब प्रस्तुत करने के आदेश दिए है। याचिकाकर्ता पंकज मेश्राम की ओर से अधिवक्ता शैलेश नारनवरे ने पैरवी की गयी।

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