सिविल कोड की माँग यदि जायज है तो समान शिक्षा, मुफ़्त शिक्षा की माँग जायज क्यों नही है..
#समानशिक्षामुफ्तशिक्षा
#equaleducation
आरक्षण विरोधियों,योग्यता-योग्यता का शोर मचाने वालो कभी इस मुद्दे पर भी कुछ बोला करो।
सिविल कोड की वकालत करने वाले,
भारत में समान शिक्षा प्रणाली पर चुप क्यों रहते है?
जैसा की हम जानते है भारत में जो शिक्षा नीति है वो बहुत ही दोषपूर्ण है या उसे जानबूझ कर व्यवसायिक बनाई गई है जिसमे अधिकारी के बच्चे अधिकारी, किसान मजदूर का बच्चा किसान मजदूर बनाने का षड्यंत्र किया जा सके। आज भारत में तीन तरह की शिक्षा प्रणाली हैं। आईसीइससीई बोर्ड, सीबीएससीई बोर्ड और स्टेट बोर्ड।
जबकि स्टेट बोर्ड के पढ़ने वाले बच्चे क्लर्क और चपरासी बन पाते हैं। ये संस्थाये 95% ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित है। 50% शासन द्वारा और 45% प्राइवेट स्कूलो के माध्यम से स्थापित हैं। इन संस्थाओ में पड़ने वाले बच्चे सिर्फ साक्षर होते है, पास होते है और किसी भी क्षेत्र में योग्य नही माने जाते है।
आज सरकारी विद्यालयो में ड्रेस, मिड डे मील, छात्रव्रत्ति, फीस किताबें सब दिया जा रहा पर शिक्षा नही दी जा रही है? गरीब किसान मजदूर का बच्चा इन स्कूलों में पढ़ कर अनपढ़ बन रहा है और मध्यमवर्गीय समाज अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के नाम पर कमाई का 40 % हिस्सा इसमें खर्च कर रहा है। फिर भी उनके बच्चे शिक्षित नही हो पा रहे हैं, शासन की गलत नीतियों के कारण आज शिक्षा माफिया मध्यमवर्गीय समाज को अज्ञान के कुँए में धकेल रहा है।
साथियो इन शासकीय पदों में रहने वाले लोगों को शासन की सभी सुविधाये चाहिए, वाहन, आवास, चिकित्सा, खाना, शासन की और से वेतन भत्ते और रिटायर मेंट के बाद पेंशन चाहिए, पर शासन द्वारा संचालित स्कूलो में इनके बच्चों को शिक्षा क्यों नही चाहिए?"
ऐसा प्रतीत होता है की शिक्षा माफियाओ ने राजनैतिक नेताओ से मिलकर षड्यंत्र रचा ग्रामीण गरीब माध्यमवर्गीय बच्चों को शिक्षा से वंचित करने का और शिक्षा का निजीकरण के तहत सामान शिक्षा प्रणाली को नेस्तनाबूत कर डाला, और शिक्षको को विभिन्न कार्यो में उलझा दिया गया। उनका किस प्रकार से शोषण किया जा सके वो सब किया गया। जो उदाहरण के रूप में पैरा टीचर, शिक्षामित्र, शिक्षाकर्मी, संविदा शिक्षक, गुरूजी, अतिथि शिक्षकों के नाम से कई प्रजाति का निर्माण कर उनको दी जानी वाली सुख सुविधाओ वेतन भत्तो में कटौती कर दी है इस कारण आज भी ये वर्ग आंदोलित है।
आरक्षण विरोधी एंव राजनैतिक दल इस मुद्दे पर मौन रहते है क्योकि यह भेदभाव उन्हें पसन्द है?
आलेख: सुरेश पासवान, महासचिव डब्ल्यू .एल .बी.एस.
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भारत में समान शिक्षा प्रणाली पर चुप क्यों रहते है?
जैसा की हम जानते है भारत में जो शिक्षा नीति है वो बहुत ही दोषपूर्ण है या उसे जानबूझ कर व्यवसायिक बनाई गई है जिसमे अधिकारी के बच्चे अधिकारी, किसान मजदूर का बच्चा किसान मजदूर बनाने का षड्यंत्र किया जा सके। आज भारत में तीन तरह की शिक्षा प्रणाली हैं। आईसीइससीई बोर्ड, सीबीएससीई बोर्ड और स्टेट बोर्ड।
जबकि स्टेट बोर्ड के पढ़ने वाले बच्चे क्लर्क और चपरासी बन पाते हैं। ये संस्थाये 95% ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित है। 50% शासन द्वारा और 45% प्राइवेट स्कूलो के माध्यम से स्थापित हैं। इन संस्थाओ में पड़ने वाले बच्चे सिर्फ साक्षर होते है, पास होते है और किसी भी क्षेत्र में योग्य नही माने जाते है।
आज सरकारी विद्यालयो में ड्रेस, मिड डे मील, छात्रव्रत्ति, फीस किताबें सब दिया जा रहा पर शिक्षा नही दी जा रही है? गरीब किसान मजदूर का बच्चा इन स्कूलों में पढ़ कर अनपढ़ बन रहा है और मध्यमवर्गीय समाज अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के नाम पर कमाई का 40 % हिस्सा इसमें खर्च कर रहा है। फिर भी उनके बच्चे शिक्षित नही हो पा रहे हैं, शासन की गलत नीतियों के कारण आज शिक्षा माफिया मध्यमवर्गीय समाज को अज्ञान के कुँए में धकेल रहा है।
साथियो इन शासकीय पदों में रहने वाले लोगों को शासन की सभी सुविधाये चाहिए, वाहन, आवास, चिकित्सा, खाना, शासन की और से वेतन भत्ते और रिटायर मेंट के बाद पेंशन चाहिए, पर शासन द्वारा संचालित स्कूलो में इनके बच्चों को शिक्षा क्यों नही चाहिए?"
ऐसा प्रतीत होता है की शिक्षा माफियाओ ने राजनैतिक नेताओ से मिलकर षड्यंत्र रचा ग्रामीण गरीब माध्यमवर्गीय बच्चों को शिक्षा से वंचित करने का और शिक्षा का निजीकरण के तहत सामान शिक्षा प्रणाली को नेस्तनाबूत कर डाला, और शिक्षको को विभिन्न कार्यो में उलझा दिया गया। उनका किस प्रकार से शोषण किया जा सके वो सब किया गया। जो उदाहरण के रूप में पैरा टीचर, शिक्षामित्र, शिक्षाकर्मी, संविदा शिक्षक, गुरूजी, अतिथि शिक्षकों के नाम से कई प्रजाति का निर्माण कर उनको दी जानी वाली सुख सुविधाओ वेतन भत्तो में कटौती कर दी है इस कारण आज भी ये वर्ग आंदोलित है।
आरक्षण विरोधी एंव राजनैतिक दल इस मुद्दे पर मौन रहते है क्योकि यह भेदभाव उन्हें पसन्द है?
आलेख: सुरेश पासवान, महासचिव डब्ल्यू .एल .बी.एस.
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