धार्मिक भावनाओं की आड़ में देश में आपातकाल लागू.
जैसा कि आप जानते है की हमे संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है किन्तु राजनैतिक, धार्मिक नेताओ द्वारा झूठे आरोप लगा कर निर्दोष लोगो को क़ानूनी अड़ंगे में उलझाया जा रहा है।
आरक्षण विरोधी, जाति सूचक शब्दों से खुलेआम सोशल साइट्स, सार्वजनिक स्थलो से अशोभनीय टिप्पणियाँ और भद्दी-भद्दी गालियाँ देते है उन्हें पुलिस या कानून का कोई भय नही रहता है।
यही हाल राजनेताओ, धर्म गुरुओ का भी है वे प्रेस वार्ताओं, सार्वजनिक मंचो के माध्यम से संविधान, आरक्षण की कटु निम्नस्तरीय निंदा करते है साथ ही भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को अपमानित भी करते है तब पुलिस विभाग, न्यायालय भी संज्ञान नही लेता है।
कोई कुत्ते का बच्चा, कौआ, गधा, शुद्र कहकर औकात की संज्ञा देता है कोई धर्म शास्त्रो सम्मत आचरण की अनिवार्यता पर जोर दे रहा है जबकि देश संविधान से संचालित हो रहा है।
जातीय हिंसाओं की घटनाएं बढ़ती जा रही है, देश के प्रत्येक प्रदेशो में ऐसी भयानक, शर्मसार कर देने वाली घटनाएँ सामने है रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या का मामला अभी शांत नही हुआ था तब तक गुजरात के ऊना शहर से दिल दहला देने वाली घटना पूरी दुनियाँ की नजर में आई।
अभी सप्ताह भर पहले उत्तरप्रदेश के गोरखपुर में दो अनुसूचित जाति के युवको को पेट्रोल डाल कर जिन्दा जलाया गया।
यह घटनाएँ सामान्य से सामान्य व्यक्ति को क्रोधित-विचलित कर सकती है। देश के प्रत्येक जवाबदार, जागरूक नागरिक का मौलिक अधिकार है की वह मौलिक अधिकारो के तहत इसकी कटु निंदा करे, विरोध करे और वर्तमान में भारत का युवा इसी जागृति के कारण सड़को पर आंदोलित है वह इन अमानवीय घटनाओ का पुरजोर विरोध कर रहा है।
सोशल साइट्स पर भी जातिवादी आतंकवाद पर टिप्पणी कर रहा है वह इन सभी घटनाओं के पीछे धार्मिक अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, जातिवादी मानसिकता को जवाबदार मान रहा है इसलिए वह तथ्यात्मक, संवैधानिक दायरे में रह कर विरोध करता है जबकि यह प्रत्येक भारतीय को करना चाहिए।
लेकिन अफ़सोस सक्षम वर्ग सत्य की आवाज को दबाना चाह रहा है इसके लिए वे धार्मिक भावनाओ की आड़ ले कर झूठे मुकदमे बनवा देते है।
पुलिस भी एक पक्षीय कार्यवाही कर रही है वे दूसरे पक्ष की दलील सुने बगैर क़ानूनी कार्यवाही कर निर्दोष अनुसूचित जाति-जनजाति, पिछड़ा वर्गो, अल्पसंख्यकों को भयभीत करने का कार्य करती है।
पुलिस भी एक पक्षीय कार्यवाही कर रही है वे दूसरे पक्ष की दलील सुने बगैर क़ानूनी कार्यवाही कर निर्दोष अनुसूचित जाति-जनजाति, पिछड़ा वर्गो, अल्पसंख्यकों को भयभीत करने का कार्य करती है।
अभी ज्वलन्त उदाहरण डॉ.शशी अतुलकर छिंदवाड़ा (म.प्र) का है इनके खिलाफ कथित उच्च जाति के लोगो ने पुलिस को ज्ञापन सौपा और मुकदमा कायम हो गया बिना आरोपी को तलब किए बिना?
जबकि महिला डॉ. शशी अतुलकर को जाति सूचक गालियाँ दी जाती है इस पर कोई ध्यान न दिया जाना घोर निंदनीय है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कमेंट करने के मामले में लगाई जाने वाली IT एक्ट की धारा 66 A को मार्च 2015 को रद्द कर कर चुकी है। न्यायलय ने इसे संविधान के अनुच्छेद 19(1)ए के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करार दिया था।
इस फैसले के बाद फेसबुक, ट्विटर सहित सोशल मीडिया पर की जाने वाली किसी भी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए पुलिस आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं कर सकती है। न्यायालय ने यह महत्वपूर्ण फैसला सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े इस विवादास्पद कानून के दुरुपयोग की शिकायतों को लेकर इसके खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया था।
वर्तमान में निम्नलिखित क़ानूनी धाराओ का गलत उपयोग किया जा रहा है.
1. धार्मिक भावनाएं भड़काने वाली पोस्ट या कमेंट (आईपीसी की धारा 295ए)
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली पोस्ट या कमेंट करता है तो उसके खिलफ आईपीसी की धारा 295ए के तहत मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। इस धारा के तहत दोषी पाए जाने पर अपराधी को 3 साल तक की जेल हो सकती है।
2. सांप्रदायिकता बढ़ाने वाली पोस्ट या कमेंट (आईपीसी की धारा 153ए)
यदि कोई व्यक्ति किसी विशेष समूह, जाति, वर्ण या संप्रदाय के आधार पर द्वेषता फैलाने वाली पोस्ट या कमेंट सोशल साइट्स पर पोस्ट करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 153 ए के तहत मुकदमा हो सकता है। इस धारा के तहत मुकदमा दर्ज होने पर 3 साल की सजा हो सकती है।
3. किसी के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली पोस्ट या कमेंट (आईपीसी की धारा 499 और 500)
यदि कोई व्यक्ति अपनी पोस्ट या कमेंट में किसी व्यक्ति विशेष के विरूद्ध उसकी मानहानि से संबंधित बातें लिखता है या कमेंट करता है अथवा गालियां देता है तो यह मान-हानि का मामला है। ऎसी पोस्ट या कमेंट करने पर आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। इसके तहत 2 साल तक की जेल हो सकती है
इतिहास गवाह है की सत्ता के दुरपयोग से देश के जागरूक, ईमानदार नागरिकों की आवाज दबाई जाती रही है बीजेपी सरकार अम्बेडकरवादियो, अल्पसंख्यकों की आवाज दबा रही है इससे स्पष्ट होता है की वह घोर साम्प्रदायिक, जातिवादी विचारधारा की समर्थक है।
किन्तु आज युवा आंदोलित है उसे सत्ताधारियो के बर्बर बर्ताव की कोई परवाह नही है अब वह निर्णायक परिणाम को लक्ष्य मान कर संघर्ष पथ पर अग्रसर है देखना है जीत किसकी होती है?
इस शोषण, अन्याय, षड्यंत्र एंव संवैधानिक अधिकारो के हनन के विरोध में अब देश का शोषित वर्ग अनुसूचित जाति-जनजाति, पिछड़ा वर्ग मौन नही रहेगा युवा सड़को पर उतर कर आंदोलन करने हेतु बाध्य है।
लेख: सुरेश पासवान, राष्ट्रीय महासचिव वी लव बाबासाहेब सोशल सोसायटी, भारत |
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