अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर संदेश देती हई यह रचना "स्त्री अबला नहीं होती"
लहू प्रवाह हर नस में बहती है,
एक रिश्ता जो कभी खफा नहीं होती।
यह जीवन मातृत्व हेतु न्योछावर बारंबार,
सबल बनाने वाली मां अबला नहीं होती।
प्यारी दीदी तेरी आंखों में असीम स्नेह है,
पर बिन तेरे नोकझोंक झगड़ा नहीं होती।
बचपन से जिस आंगन में साथ पले-बढ़े,
घर छोड़ ससुराल जाती बहन अबला नहीं होती।
जब से बगावत कर बैठी जो नूर-ए-महल,
वह जीवनसाथी रूह से जुदा नहीं होती।
कभी हताश हुआ तो मेरी प्रेरणा बनकर समझाए,
ऐसी पत्नी-प्रेमिका कभी अबला नहीं होती।
इंसानियत की दुनिया में इंसान बनो भाई,
मां-बहन-पत्नी कोई अबला नहीं होती।
- सूरज कुमार बौद्ध,
(रचनाकार भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हैं।)
#InternationalWomensDay
#internationalwomensday2018
एक रिश्ता जो कभी खफा नहीं होती।
यह जीवन मातृत्व हेतु न्योछावर बारंबार,
सबल बनाने वाली मां अबला नहीं होती।
प्यारी दीदी तेरी आंखों में असीम स्नेह है,
पर बिन तेरे नोकझोंक झगड़ा नहीं होती।
बचपन से जिस आंगन में साथ पले-बढ़े,
घर छोड़ ससुराल जाती बहन अबला नहीं होती।
जब से बगावत कर बैठी जो नूर-ए-महल,
वह जीवनसाथी रूह से जुदा नहीं होती।
कभी हताश हुआ तो मेरी प्रेरणा बनकर समझाए,
ऐसी पत्नी-प्रेमिका कभी अबला नहीं होती।
इंसानियत की दुनिया में इंसान बनो भाई,
मां-बहन-पत्नी कोई अबला नहीं होती।
- सूरज कुमार बौद्ध,
(रचनाकार भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हैं।)
#InternationalWomensDay
#internationalwomensday2018
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