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हमारा भी समर्थन भीम आर्मी को लेकिन शर्तो के साथ

दोस्तो आप सभी को क्रांतिकारी जय भीम - वी लव बाबासाहेब!
आज हमें और #भीम_आर्मी को निर्णय लेना होगा कि हम #जातिवादी_आतंकवाद से कैसे निपटें?
कब तक खून बहेगा?
कब तक मंदिर जाने पर अपमानित होते रहे?
कब तक माँ-बहनो की आबरू लूटी जायेगी?
कब तक छुआ छूत जैसे अमानवीय अत्याचारो को सहेंगे?
इन प्रश्नों का क्या यही जवाब है कि हम भी खून बहाये, हम भी हिंसा करें?
हम भी उन्ही की तरह क्रूरतम अपराध करे?

हमारा मानना है कि हम उस व्यवस्था को ही त्याग दे जिस कारण हमें शुद्र, नीच, दलित कहा जाता है स्पष्ट रूप से कहे तो हमे जातिविहीन समाज की स्थापना करना होगा और यह जाति पर अभिमान से सम्भव नही है.

हमे 14 अक्टूबर 1956 में बाबासाहेब अम्बेडकर ने जो बौद्ध धम्म में पुनः वापसी की थी 8 लाख अनुयायियों के साथ और जो 22 प्रतिज्ञाएँ दी थी उस पर विचार करना होगा.
आखिर बाबासाहेब अम्बेडकर ने बौद्ध धम्म में अपने अनुयायियों को वापसी क्यो करवाई थी?
आप सरकार से न्याय के लिए प्रदर्शन करोगे, न्याय की गुहार लगाओगे क्या यह मनुवादी सरकार न्याय देगी?
दोषियो को सजा मिले इसके लिए अभियान तो चलते रहना चाहिए किन्तु प्रबुद्ध भारत अभियान का बड़े पैमाने में भी अभियान चले क्योकि जबतक हम स्वंय की जाति में बंधे रहेंगे तब तक यह पुष्यमित्र शुंग और पेशवाओ को आदर्श मानने वाले हमे नीच और शूद्र समझते रहेंगे इसलिए त्याग दो उस बेड़ी को जो तुम्हे समानता नही देती.

एक बात और है सिर्फ धर्म परिवर्तन से ही यह भेदभाव खत्म नही होगा हमे धर्म परिवर्तन के बाद जाति मुक्त समझना होगा.
हम सिर्फ एक मनुष्य और भारतीय है यह विचार को कठोरता से मानना होगा.
ब्राह्मणवादी हर रीतिरिवाजों का त्याग करना होगा बुद्ध और बाबासाहेब अम्बेडकर के वैचारिक दृष्टिकोण को अध्ययन करके आत्मसात स्वंय को तो करना होगा बल्कि जिन्हें हम हमारे मूल धम्म में वापस लाये है उन्हें भी बुद्ध और उनका धम्म से रूबरू करवाना होगा.

क्योंकि जो लोग धर्म परिवर्तन कर बौद्ध बने हैं, उनकी यह सबसे बड़ी समस्या है कि उनका समूचा आचरण, समूचा व्यवहार अपनी जाति के अंतर्गत ही चलता है और बाहर जो विशाल दुनिया है, उस विशाल दुनिया की तरफ देखने का जो दृष्टिकोण है, तथागत बुद्ध का विचार स्वीकृत करने के बावजूद भी उनका दृष्टिकोण विकसित नहीं हो पाया है.  हम देखते हैं कि लोगों ने धर्म परिवर्तन तो किया मगर उनके विचारों में किसी किस्म का कोई परिवर्तन होता हुआ नजर नहीं आता। कम से कम जिस मकसद को लेकर बाबासाहब अम्बेडकर ने धर्म परिवर्तन किया, उस मकसद, उस उद्देश्य के अनुरुप लोगों के विचारों में परिवर्तन नहीं हो पाया है.

इसलिए हमें यह याद रखना होगा कि
हम भूल जाये कि हम कभी हिन्दू थे हम कभी भी हुन्दू नही थे हमारे पूर्वज सम्राट अशोक के शासनकाल में बौद्ध अनुयायी थे किंतु प्रतिक्रांति के कारण हमें पुनः गुलाम बनाया गया और तुच्छ कार्यो को करने पर मजबूर किया गया था.

भीम आर्मी और गुजरात के जिग्नेश मेवानी जी के सभी साथियो से वी लव बाबासाहेब सोशल सोसायटी की पूरी टीम की अपील है कि हम बाबासाहेब अम्बेडकर के दिखाए रास्ते पर चले हमे कोई नया कांसेप्ट बनाने की आवश्यकता नही है बुद्ध और बाबासाहेब अम्बेडकर की विचारधारा उनका कॉन्सेप्ट पर्याप्त केवल हमे उसे समझ कर एक बार इस अभियान को गति दे अभी अच्छा समय है आप सभी आंदोलित है तो आइए हम सभी मिलकर धम्म क्रांति के आंदोलन में अपनी ताकत लगाए.
हम समाजिक क्रांति के पहिये को गति प्रदान करे सम्पूर्ण क्रांति अवश्य होगी.

हम अपने साथियों से अपील करते है संवैधानिक दायरे में रहते हुए आंदोलन करे क्योकि हमे इस सरकार पर अब भरोषा नही रहा यह हमारी कमजोरियों को पकड़ कर हमे ब्लेकमेलिंग करेगी.
हम अपनी ताकत पहचाने हमारी ताकत भारतीय संविधान है.

सुरेश पासवान, राष्ट्रीय महासचिव
राकेश महाले, प्रदेश अध्यक्ष (म.प्र)
वी लव बाबासाहेब सोशल सोसायटी, भारत





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