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भीमा कोरेगांव एवं मनुवादी बौखलाहट पर सूरज कुमार बौद्ध की कविता: 56 इंची परिभाषा


56 इंची परिभाषा
हम डरते नहीं सलाखों से,
कल भी आए थे लाखों से।
ले देख तू अपनी आंखों से
हम फिर आए हैं लाखों से।
बनेगी बात नहीं जब बातों से,
हम फिर आएंगे लाखों से।
अखलाक, रोहित, ऊना
सहारनपुर, खगड़िया, कोरेगांव....
यह श्रृंखला जल्द ही टूटकर
नवीन क्रांति की ओर
मुखर हो रही है !
अब हमारी चीत्कार
हुंकार का रूप ले रही है।
तुम्हारी जेल की कोठरियां
और हमारी बेसुध सिसकियां
हमें और कतारबद्ध कर
मजबूत कर रही है।

अबकी आवाज और भी बुलंद होगा
एक राज्य नहीं पूरा भारत बंद होगा।
और तब तक बंद रहेगा जबतक
हमारे बेबाकी पर कोई पहरा न रहे।
अब दो मिनट की शांति का दौर
हमारे तरीके में नहीं रहा।
अब अशांति होगी जबतक
कोई जन्मजात छोटा बड़ा न हो।

हमारे अपने शौर्य पर
बौखलाना तुम्हारी फितरत है।
क्या हमें तुम आतंकियों के
आदेश की जरूरत है?
उन्हीं आतंकवादियों का,
जिनकी अकड़ 1818 के रण में
चूर चूर हो गई थी।
जब पेशवाओं की पेशवाई
सिसक सिसक तड़प मरी थी।
हमें कोरेगांव युद्ध पर गुमान है,
हां, शौर्य दिवस हमारी पहचान है।

तुम वंदे मातरम कहते हुए
छिपकर वार करते हो।
अपनी कायरता का प्रदर्शन कर
वीरता शर्मशार करते हो।
भीमा कोरेगांव का नाम सुनते ही
तुम कांप क्यों उठते हो
क्योंकि
भीमा कोरेगांव एक नाम है
जुल्म ज्यादती का प्रतिकार करते हुए
56 इंची परिभाषा गढ़ने का।

- सूरज कुमार बौद्ध,
(रचनाकार भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हैं।)

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