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अब यकीन हुआ यह देश मनु विधान की ओर बढ़ रहा है.

जैसा कि आप जानते है इस वक्त न्यायपालिका की विश्वनीयता पर बहस गर्म हैं कारण सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जे. चेलामेश्वर के साथ दूसरे वरिष्ठ न्यायाधीशों ने शुक्रवार को नई दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए.

जस्टिस जे. चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को नहीं बचाया गया तो लोकतंत्र नाकाम हो जाएगा.

सोशल मीडिया में कल से इसी मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई हैं वरिष्ठ पत्रकार एंव पूर्व इंडिया टुडे के सम्पादक दिलीप मंडल ने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा है कि
"माननीय चार जजों, आपका लोकतंत्र अब खतरे में पड़ गया है, जब जस्टिस मिश्रा मतलब के सारे केसेस अपनी पसंद के जजों को सौंप दे रहे हैं.
आप चारों जज सात जजों की उस बैंच में थे, जिसने जस्टिस कर्णन के खिलाफ फैसला सुनाया था.

जस्टिस केहर, मिश्रा और घोष के साथ उस बेंच में चलमेश्वर, लोकुर, जोसफ और गोगोई भी थे.
उस समय अगर चलमेश्वर, लोकुर, जोसफ और गोगोई ने अपनी रीढ़ की हड्डी दिखा दी होती, तो आज ये नौबत न आती.

लोकतंत्र की थोड़ी परवाह कर्णन केस में कर ली होती, तो आज न आपकी इज्जत इस तरह नीलाम होती, न न्यायपालिका की इस तरह फजीहत होती.
सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण विरोधी अब तक के हर फ़ैसले में आपको किसी न किसी ब्राह्मण जज के दस्तखत दिखेंगे.
सुप्रीम कोर्ट में इस समय एक भी दलित जज नहीं है. न्यायपालिका एक मंदिर है, जहाँ दलित सिर्फ दक्षिणा देने जाता है. पुजारी कोई और है."

वही सुरेश पासवान, राष्ट्रीय महासचिव वी लव बाबासाहेब सोशल सोसायटी ने फसेबूक पर लिखा है कि "सेल्यूट कीजिए बाबासाहेब की कलम से निकले पूर्व जस्टिस कर्णन को जिन्होंने पूर्व में ही न्यायलय की कार्यप्रणाली पर प्रश्न खड़े कर दीए थे तब उनकी बातों को मीडिया ने तवज्जों नही दिया था.
आज सुप्रीम कोर्ट के चार जज फिर इसी मुद्दे को लेकर देश के सामने आये हैं.

अब यकीन हुआ यह देश मनु विधान की ओर बढ़ रहा है."

और भी कई तथ्यात्मक एंव तात्कालिक प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं.

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