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कौन लड़की देवदासी बनेगी इसका फैसला मंदिर का पुजारी करता था वह लड़की

युवा लेखक उदय कुमार गौतम ने भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जी को केंद्र में रखकर यह मार्मिकता भरा जबरदस्त लेख लिखा है भारत की आधुनिक नारियों के लिए पढ़िये..

आधुनिक युग विज्ञान का युग है, बेटी आज तुम आयी हो पुष्प चढ़ाने तुम्हें अपने पास पाकर मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया है तुम्हारे नाम के आगे लगे योग्यता के प्रतीक(डॉ, प्रोफेसर, इंजीनियर, एडवोकेट)तुम्हें भी बड़ा होने का एहसास दे  रहे है। अपनी योग्यता से तुम भी अपने आप को पुरषो के बराबर समझने लगी हो। तुम्हारी उपलब्धियों से मुझे संतोष मिला है जैसा मैं सोचता था वैसा तुम बन पा रही हो । पहले तुम घर तक सीमित रहती थीं, परिवार की देख भाल करती थी अब घर से बाहर भी काम करती हो ।
धन कमाने के लिए नौकरी भी करती हो अब तो तुम्हारे कंधो पर दुगुना बोझ आ पड़ा है घर भी संभालो और दफ्तर, आफिस भी ज्ञान प्राप्ति के बाद बोझ कम होना चाहिये था लेकिन तुम्हारा बोझ और भी बढ़ गया है । ऐसा मैंने नही सोचा था जब तुम ऑफिस से घर आती हो तो काम के बोझ से ऊब जाती हो ऑफिस का काम घर के काम पर भारी पड़ता है पति के साथ झगड़ा भी होता है। तुम मुझे कोसती हो जब अनपढ़ थी तो केवल घर का ही काम करना पड़ता था अब ऑफिस संभालो और घर भी।
यह गलती मेरी नही थी, बेटी यह तुम्हारी समझ का फल है तुमने ठीक से नही समझा, ज्ञान का उपयोग बेड़ियां काटने के लिये किया जाता है।

ज्ञान से आदमी अपनी अज्ञानता, अंधविश्वास और जड़ता को तोड़ता है ज्ञान ही मुक्ति के मार्ग का एक साधन है लेकिन तुमने इस मुक्ति के साधन को केवल जीवन चलाने के लिए, धन अर्जित करने के लिए इसका उपयोग कर रही हो तुमने उस ज्ञान से मुक्ति की संभावनाओ को नहो देखा इसलिए यह सब भुगतना पड़ रहा है। मैंने तो तुम्हारे जीवन को बड़ी ही बदतर हालात में देखा है।
क्या था तुम्हारे पास? इस देश में महिला भी ब्रम्हा के पैरों से पैदा हुई ब्राम्हण के घर वह ब्राह्मणी कहलाई लेकिन महिला होने के कारण शूद्र ही रही शूद्र और शोषण एक दूसरे के पर्यायवाची सब्द है तुम महिला के रूप में पैदा हुई हो इसलिए शोषण तो होगा ही ऐसी मान्यता ने महिलाओं को समर्पित कर दिया शोषण की चक्की में पिसने के लिए। मैंने देखा है उस दौर को कोई नही सुनता था।
जब कोई पुरूष मरता था, तब उसी के साथ तुम्हें भी जलाया जाता था । तुम चीखती थी.........
चिल्लाती थी........ 

जलकर नही मरना चाहती थी लेकिन असहय बनकर रह जाती थी । शरीर के किसी अंग पर एक चिंगारी पड़ जाय तो हम चिल्ला उठते हैं तुम्हारा तो पूरा शरीर जलता था तुम चिल्लाती थी, बचकर भागना चाहती थी ,लेकिन स्वयं को बचा नही सकती थी। तमाम औरते गीत गा गाकर करके तुम्हे प्रेरित करती थी, जलकर मरने के लिए, ढोल और नगाड़े बजते थे, उनकी तेज आवाज में तुम्हारी चीख दबकर राह जाती थी। तुम चिल्लाती रहती थी ढोल नगाड़े बजते रहते थे । फिर कहा जाता था तुम सती हो गयी जलकर मारने का अहसास किसी को बता भी नही सकती थी, सती होने का गौरव भी पा जाती थी फिर तुम्ही ने पूजा है। उस सती को जिसे जबरन धर्म के नाम पर जिंदा जलाया तुम्हारी इस नासमझी ने अन्य औरतों को मारने के लिये मजबूर किया लाखो बेगुनाह मार चुकी है। इस पाखंडवाद की बली पर परंतु अब मैंने इसे इतिहास के काले पन्नो में दफन कर दिया है। अब न कोई सती होती हैं और न कोई सती कर सकता है । मेरे द्वारा लिखा हुआ कानून तुम्हारी सुरक्षा का कवच है । लेकिन तुमने उसे समझा नही तुम्हारे साथ अतीत में क्या क्या घटा देखकर सिहरन सी पैदा है मैं तड़प उठता हु जब मैं तुम्हारे अतीत को देखता हूँ। लेकिन तुम्हे क्या? तुमने तो पढ़ना ही बंद कर दिया पढ़ाई का मतलब केवल परीक्षा पास करने से ही राह गया।काश तुम ठीक से पढ़ना जान जाती तो जीवन की परीक्षा में भी पास हो जाती।तुमने नही पढ़ा पर मैंने पढ़ा है।मैं जानता भी हु औऱ मैंने देखा भी है।

जिन धार्मिक मान्यताओं को तुम जीवन का आधार समझती हो वही तुम्हारी बेड़ियां है । तुमने युवावस्था में शिव का व्रत किया अच्छा पति पाने के लिए। अनेकों बार व्रत किए पार्वती की कहानी भी सुनी फिर भी ना समझ सके तुम्हारी शादी हुई पति शराबी मिला क्योंकि जब नशा करने वाला तुम्हारा आदर्श है तो पति भी वैसा ही मिलेगा। शराबी मिला वह तुम्हें पीटता है तुम पिटती रहती हो । वह तुम्हें आग में जलाता है तुम जलकर मर जाती हो। शिव की पत्नी भी जलकर मरी थी क्या सीखा तुमने यह मृत्यु का मार्ग है तुम उसी मार्ग पर चली हो इसलिए प्रतिपल मरती हो तुम बच सकती हो अच्छे आदर्श को पाकर। बिना प्रयास किए ज्यादा पाना चाहती हो इसलिए कभी सोमवार कभी मंगलवार शनिवार और रविवार का व्रत करती हो । कभी पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हो तो कभी संतानों की सुरक्षा के लिए साउ माता का। कोई भी तो काम नहीं आता जब मैं विलायत पढ़ने गया रमा घर पर रहती थी जब वह अकेली थी वह भी तुम्हारी ही तरह अंधविश्वास का शिकार हो गई देवी-देवताओं में विश्वास करने लगी अपनी संतानों की लंबी उम्र के लिए उपवास भी रख करने लगी यह उसका भ्रम था । मैं जानता हूं घर में धन की कमी थी बच्चों को ठीक से भोजन नहीं मिला कुपोषण की वजह से बीमार हो गए इलाज के लिए धन नहीं था एक-एक करके मौत के मुंह में समा गए।

मेरी भी एक बेटी थी मेरे विदेश जाने के बाद पैदा हुई रमा ने उसका नाम इंदु रखा मैंने भी अपनी बेटी के लिए अनेकों कामनाकी  है कि मैं तो हजारों मील दूर था मैंने बेटी को देखा भी नहीं था इसी सामाजिक गैरबराबरी का शिकार इंदु जीवनी थी वह बीमार हो गई इलाज के लिए धन नहीं था लेकिन रमा को भरोसा था ईश्वर दैवी शक्ति पर उसने भी उपवास रखा लेकिन इंदु का जीवन नहीं बचा सकी 9 माह की अवस्था में ही इंदु इस दुनिया से विदा हो गई। इंदु के अलावा भी रमा की कोख से पैदा हुए गंगाधर, रमेश और राजरतन ने शिशु अवस्था में ही दम तोड़ दिया। जीवन में नीरसता आ गई इंदू की मौत के बाद रमा ने कोई उपवास नहीं रखा अज्ञानता का भ्रम और देवताओं के प्रति श्रद्धा खत्म हो गई भले ही रमा ने अपनी संतानों को खोया किंतु उसमें आत्मविश्वास था अब वह अज्ञात भय से मुक्त थी मैंने रमा को अनपढ़ होते हुए भी भ्रम से मुक्त देखा है लेकिन तुम तो पढ़ी लिखी हो भ्रम का शिकार हो कर भ्रमित रहती हो ।

जब मैं भारत का कानून मंत्री बना वह मेरे जीवन का बहुत महत्वपूर्ण समय था मुझे अपनी शक्ति में पूरा भरोसा था देश कानून से चलता है और कानून मुझे बनाना था मेरी छटपटाहट तुम्हें मुक्त करने की थी।
मेरी आंखो के सामने धर्म के नाम पर तुम्हारे साथ खेला जाने वाला घिनौना खेल था मैंने देखा कि भूदेव जो स्वयं ईश्वर की आज्ञा से कानून बनाते थे बहुत अनैतिक थे नंबूदरी ब्राह्मण संबंधन नाम के धार्मिक कानून का हवाला देकर किसी भी शूद्र महिला के साथ विवाह कर लेते थे या विवाह भी अजीब था नंबूदरी ब्राह्मण विवाह करता था लेकिन उस महिला का पति नहीं होता था इस विवाहित महिला की ससुराल भी नहीं होती थी वह लड़की अपने पिता के घर पर ही रहती थी रात के अंधेरे में वह नंबूदरी ब्राह्मण आता था और उस महिला का शारीरिक शोषण करता था उजाला होने से पहले ही चला जाता था रात के गहन अंधकार में उसकी अनेक रिक्ता दफन हो जाती वह महिला तड़पती रहती विवाह हुआ पति नहीं ससुराल नहीं संतान भी पैदा होती पर पिता का नाम नहीं हजारों हजारों महिलाओं का जीवन कुर्बान हो गया संबंधन नाम के ब्राह्मण के साथ हुए विवाह के नाम पर मुझे बड़ा असहनीय लगता था।

जब किसी धर्म के ठेकेदार भूदेव की कुदृष्टि शूद्र के घर में पैदा हुई बच्ची पर पड़ती तो वहां परपंच करता गांव में अकाल पड़ने वाला है ,महामारी फैलने वाली है ,बाढ़ आने वाली है ,देवता कुपित हो रहे हैं, अगर पूरे गांव को बचाना है ,तो उसके लिए एक लड़की को देवदासी बनाना पड़ेगा । भूदेव ब्रम्ह का स्वरुप है सब को भ्रमित कर देता है ब्रह्मा के आदेश को न मानने की सजा भी थी भला सूद्र कैसे दुस्साहस कर सकता था  कोई भी पिता अपनी बेटी को देवदासी नहीं देखना चाहता ब्राम्हण का आदेश गांव पर आने वाली विपत्ति का डर और अनर्थ की आशंका से सभी बेजुबान हो जाते थे । कोई अपनी बेटी को देवदासी बनाने में मना भी करता तो उसे दंडित किया जाता मौत की सजा भी कोई जुर्म नहीं थी एक पिता मरकर भी अपनी बेटी को देवदासी होने से नहीं बचा सकता था।
कौन लड़की देवदासी बनेगी इसका फैसला मंदिर का पुजारी करता था वह लड़की केवल सुंदर समाज से ही होती थी चिन्हित लड़की का विवाह मंदिर में विराजे पत्थर की मूर्ति के साथ कर दिया जाता था शादी के बाद लड़की की ससुराल वह मंदिर बनता था वह मंदिर में चली जाती देवता कभी प्रसन्न होते तो कभी कभी तू चाहे देवता प्रसन्न हूं या कुवैत दोनों अवस्थाओं में उस देवदासी को मंदिर के पंडों की कामवासना का शिकार होना पड़ता था देवता खुश भी होता तब भी पंडे शरीर नोचते थे और देवता कुपित होता तब भी।
देवदासी को संतान भी पैदा होती थी पत्थर की मूर्ति ने देवदासियों से संतान भी पैदा की लेकिन पिता का नाम नहीं दिया उनकी संतानों को हरिजन कहा जाता है दक्षिण भारत में हजारों देवदासियां आज भी धर्म के नाम पर पंडों की रखैल बन रही है उनकी संताने हरिजन होने का गौरव पा रही हैं।
यह सब असहनीय था मेरे लिए मैं नहीं चाहता था किसी पिता की कोई बेटी देवदासी बनकर पंडों की कामवासना का जीवन भर शिकार रहे इसे कानून से रोका जा सकता था भले ही कोई भी लेकिन तुम्हारा यहां पिता कमजोर नहीं था मुझे अपने ज्ञान और कलम की ताकत पर भरोसा था मुझ में सक्ति थी इस अनैतिकव्यवस्था को बदलने की। इसे कानून से रोका जा सकता था तब ब्रम्हाड़ के आदेश को मना नहीं कर सकता था अनर्थ की आशंका से बेजुबान हो गया था लेकिन तुम्हारा यहां पिता कमजोर नहीं था मुझे अपने ज्ञान और कलम की ताकत पर भरोसा था मुझे सक्ति थी इस अनैतिक व्याभिचार को रोकने की।

मैंने तुम्हें सफेद वस्त्रों में सिर मुंडवाते हुए देखा है बाल अवस्था में की शादी हो जाती थी वह लड़की ससुराल भीें नहीं गई, पति को देखा भी नहीं, शादी का अर्थ क्या होता है मालूम ही नहीं था, पति मर गया वह विधवा हो गई, पति कैसे मरा किस बीमारी से मरा इलाज करवाया भी कि नही, कोई पूछता भी नहीं था ,कोई सवाल नहीं करता था, बस एक ही बात थी कि तुम विधवा हो, तुम अपशकुनी ,हो सौंदर्य का कोई अर्थ नहीं सिर मुंडवा दिया और सफेद वस्त्र पहना दिए बस तुम एक विधवा हो यह विधि का विधान है भाग्य का फल और कर्मों की मार मानकर चलती रही हो । जिस मां ने तुम्हें जन्म दिया वह भी कोसती थी पिता का प्यार भी नहीं वहां भी ताने देता था तो तुम नहीं भाई के शादी में चाहे तेल उतारना ही हो यह काम एक सुहागे नहीं कर सकती थी हर एक खुशी का क्षण तुम्हें जीने का अवसर नही देता था और तुम रोती थी अपने भाग्य और किस्मत को कोसती थी तुम रोती रही कोई नहीं सुनता था। तुम्हें सफेद वस्त्र इसलिए पहनाए थे कि तुम पवित्रता का जीवन जीओ तुमने जीना भी सीखा जीवन में पवित्रता को बनाए रखने के लिए सजगता से चरित्र की पहरेदारी भी की लेकिन तुम फिर भी कलंकित रही समाज के तथाकथित चरित्रवान लोगों की कुदृष्टि का शिकार बनती रही ।दिन के उजाले में जो नैतिक रहते थे ,धर्म की मर्यादाओं का बखान करते थे, उन्होंने ही तुम्हें रात के अंधेरे में लूटा है नैतिकता के मापदंडों को तार-तार किया है। चरित्रहीन होने का आरोप भी तुम्हारे माथे पर काली बनकर लिपटा रहा है तुम्हारे साथ अनैतिकता का खेल खेलने वाले अनैतिक पुरुषों पर आज तक कोई उंगली नहीं उठी।

पवित्रता तुम्हारा गहना था प्रत्येक पुरुष तुम्हें पवित्र देखना चाहता था ताकि तुम्हारा इस्तेमाल कर सके लेकिन अफसोस तो इस बात का है कि कोई महिला भी तुम्हारे दुख को नहीं समझ सकी उसने भी तुम्हें कुल्टा कहा ,दुश्चरित्र कहा, शब्द कम पड़ सकते हैं परंतु तुम्हारे दर्द कम नहीं।
जिस व्यक्ति की पत्नी मर जाए वह कितनी भी शादी कर ले लेकिन पति के मरने पर तुम नहीं कर सकती थी पत्नी की मृत्यु पर कोई पुरुष सिर मुंडवाकर सफेद वस्त्र नैतिकता का उसका अपना मापदंड है विधवा तड़पती रही है हजारों महिलाएं को चलती रही है किसी ने इस नर्क से छुटकारा भी पाना चाहा तो केवल एक ही मार्ग था स्वयं की हत्या का। आत्महत्या ही मुक्ति का इकलौता मार्ग था ।मैंने तुम्हें असहाय अवस्था में देखा है तुम्हें इस दशा में देख कर मेरी रूह कांप उठती थी आन्दोलित हो गया था मैं तुम्हारी मुक्ति के लिए। क्या ये ईश्वर तुम्हारी रक्षा में न आया हो लेकिन मुझे कोई नहीं रोक सकता था।
पिता की संपत्ति में तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं था। पति की संपत्ति तुम्हारी नहीं थी। तो फिर तुम क्या थी केवल महिला, नारी ,पत्नी,  मां ,बहन रिश्ता कुछ भी अधिकार कोई नहीं । तुम केवल औरत थी केवल औरत जिसको प्राकृतिक नियमों के तहत पैदा होना था पैदा हुई केवल उपभोग के लिए शब्दों के पर पंच ने तुम्हें गुमराह किए रखा । तुमने राखियां भी बांधी कोई भाई तुम्हारी लाज बचाने नहीं आया।
तुमने पति की लंबी उम्र की कामना भी की व्रत भी किए ताकि तुम्हारा पति जीवित रहे किसी पति ने कोई यत्न नहीं किया की पत्नी भी लंबी उम्र जिये । तुम पति की मृत्यु पर जिंदा जलकर मरी ,सती बन गई लेकिन कोई पति पत्नी के साथ जलकर नहीं मरा।
तुमने मां बनकर संतानों की परवरिश भी की कोई भी संतान तुम्हें रूप ना दे सकी । मां चाहे पति की चिता पर जल रही हो चिल्ला-चिल्लाकर जीवित रहने के लिए तड़प रही हो संताने मौत की दर्शक बन गई कोई बेटा अपनी मां को बचाने नहीं आया। मां विधवा रही, बहन विधवा हो गई ,बेटी विधवा हो गई, बेटा ,भाई, पिता सब रिश्ते खत्म हो गए किसी ने तुम्हारी परवाह नहीं कि तुम अकेली थी इस वीरान में पति जीवित रहा तो तुम भी जीवित थी पति मर गया तो तुम भी मर गई।

लेकिन मैं एक मां का बेटा भी हूं मैं भी बहन का भाई हूं और अपनी पत्नी का पति । मैंने अपनी शक्ति को समझा मैं भारत का कानून मंत्री बना मेरे द्वारा बनाया गया संविधान भला तुम्हें गुलाम कैसे रहने देता मैं प्रयास में जुट गया।
मैं नेहरू, पटेल ,राजेंद्र प्रसाद व सभी को समझाने लगा पर यह ब्राम्हणवादी लोगों ने मेरी बात को मानने से मना भी किया था मैंने मुक्ति का दस्तावेज था तुम्हारे बराबरी के अधिकारों का शस्त्र था।
मैं पूरी तैयारी के साथ देश की लोकसभा में हिंदू कोड बिल लेकर आया देश का प्रधानमंत्री ब्राम्हण था, राष्ट्रपति ब्राम्हण था, गृहमंत्री तो सूत्र था लेकिन उसे छत्रिय होने का अभिमान था क्या ब्राम्हण, क्षत्रिय ,वैश्य, शूद्र यह सब अलग-अलग थे लेकिन तुम्हारी मुक्ति के दस्तावेज के विरोध में सब एक हो गए नेहरू जो मुझसे वादा करके गया था कि वह साथ देगा वह भी मुकर गया उन्हीं के साथ हो गया मैं तुम्हें मुक्त करना चाह रहा था और उन्हें ब्राम्हण का वर्चस्व खत्म होता दिख रहा था। मैं अकेला था लेकिन दूसरी और सभी थे वह ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी मेरे विरुद्ध हो गए मैंने इस लड़ाई को बहादुरी से लड़ा ।न ही कोई मुझे मना कर सकता था। और ना ही ज्ञान की दलीलों से मुझे कोई हरा सकता था । मैंने तुम्हारी मुक्ति के लिए दलील दी मेरे जवाब के लिए किसी के पास कोई दलील नहीं थी किसी के पास कोई जवाब नहीं था यह सब असहाय हो गए कानून के रूप में संविधान तुम्हें पूरा संरक्षण देने के लिए तैयार था । मेरे द्वारा बनाया जाने वाला कानून तुम्हारे संरक्षण का मजबूत कवच था। सभी लोग तुम्हारे विरुद्ध खड़े हो गए मैं अकेला योद्धा बनकर लड़ा पर कानून न बन सका। देश के सांसदों का मत तुम्हारे विरुद्ध था। लोकसभा में हिंदू कोड बिल गिर गया मैं एक कमजोर कानून मंत्री बन कर नहीं रह सकता था। उस समय अपना त्यागपत्र लेकर प्रधानमंत्री के पास चल पड़ा । राजेंद्र प्रसाद जो राष्ट्रपति है उन्होंने मुझे पद छोड़ने की धमकी दी। गृहमंत्री पटेल भी ऐसी ही धमकी दे रहे थे मुझे क्षमा करना ऐसा नेहरू नेकहकर छमा मांगी थी ।मुझे कानून मंत्री बने रहने के लिए निवेदन भी करता रहा लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता था।
मैं उस समय देश की लोक सभा में हिंदू कोड बिल पर अपना व्यक्तव्य देना चाहता था। लेकिन सभापति ने क्योंकि वह जानते थे कि मैं उनकी तुम्हारे प्रति मानसिकता को सबके सामने रख दूंगा ।वे पर पंच तो तुम्हारे हीतैसी होने का करते हैं। लेकिन कार्य तुम्हारे विरुद्ध। प्रधानमंत्री कमजोर हो सकता है। लेकिन कानून मंत्री के रूप में मै नहीं और मैं चला आया देश की लोकसभा में तुम्हारी मुक्ति का बीज बोकर आज मेरे द्वारा तैयार किया गया हिंदू कोड बिल टुकड़े-टुकड़े करके पास हो चुका है अब तुम कानूनी रूप से स्वतंत्र हो तुम्हारा पुरुषों के साथ समान सत्ता और संपत्ति में बराबर की भागीदार भी हो मैंने ना केवल तुम्हें बराबरी का दर्जा दिया है बल्की पुरुषों के एकाधिकार और वर्चस्व को समाप्त भी किया है अब तुम स्वतंत्र हो मैं तुम्हें स्वतंत्रता देना चाहता था लेकिन एक और नई गुलामी तुमने ओढ़ ली है तुम मुझ में भरोसा  नहीं करती हो तुम भूल चुकी हो तुम्हारा मुक्तिदाता कौन है आज फिर तुम मेरे बताए मार्ग पर ना जाकर ब्राम्हणवाद के दलदल में जाकर फंस रही हो।

मैंने तुम्हें ज्ञान को मुक्ति का मार्ग पता करके उस पर चलने के लिए कहा था तुम नामदान और ध्यान के मार्ग पर चल पड़ी हो मैंने तुम्हें दाढ़ी वाले पाखंडी पन्नों से बचने के लिए कहा था आज तुम उन्हीं की शरण में जाने लगी हो मैंने तुम्हें कहा था शिक्षा पाकर अपने परिवार और समाज की सुंदर परवरिश करनी है पर तुमने ज्ञान को पाकर भी अज्ञानता को खत्म नहीं किया ज्ञान का अर्थ प्रकाश होता है जिससे अज्ञानता का अंधकार खत्म हो जाता है मुक्ति का मार्ग अस्पष्ट नजर आता है पर तुमने यह क्या किया ज्ञान पाकर भी अंधकार में भटक रही हो।
बेटी समझने की कोशिश करो मुझे ज्ञान मिला मैंने उसे खुले रुप में सबको बता रहता ज्ञान बंधककर नहीं रहता। ज्ञान की प्रकृति फैलने की है ज्ञान प्रकाश है अंधेरा नहीं रह सकता। ज्ञान पहचान बताता है किसी भी परिस्थिति को ठीक से समझने के लिए रास्ता देता हैरोहित और रहित का बोध करवाता है ।जब कोई व्यक्ति ज्ञान से सुशोभित होता है। तो वहां मैंने तुम्हें समझाया था की बीमारी का उपचार दवा से होता है , बीमारी के कारण को समझ लेने से इलाज संभव हो जाता है अगर मैं ज्ञान की दहलीज से न गुजरता तो क्या यह सब कर पाता।
मुझ से पूर्व तो यह पाखंडी लोग तुम्हारी परछाई से भी नफरत करते थे तुम्हें नीच और कुलटा कहते थे तुलसीदास जैसे लोग तो तुम्हें ताड़न के अधिकारी कहते थे तुम अज्ञानता में फंसी रहो इसलिए ज्ञान से दूर रखते थे आज तुम्हें शिष्य के रूप में स्वीकार कर रहे हैं।
तुम उनसे नाम लेने जाती हो वह परमात्मा का दूत तुम्हें नाम दान देकर कहता है नाम का सुमिरन करो तुम नाम जपते रहो।
मुक्ति के लिए...........सुख के लिए..........
समृद्धि के लिए......... संतानो के लिए...............
जब वह तुम्हें नाम देता है तब कहता है इसे किसी दूसरे व्यक्ति को बताना बस नाम जपना। चोर चोरी की चीज को छुपाता है । अपराधी अपराध को छुपाता है ।अनैतिक व्यक्ति का अनैतिक कर्म करके उसे छुपाता है । धोखा देने वाला व्यक्ति धोखा देकर सत्य को छुपाता । ज्ञान और सच्चाई कभी नहीं छुपाई जाती विद्वान लोगों ने ज्ञान को खोजा और खुले रुप में बांटा यह सभी आविष्कार विज्ञान व ज्ञान पर खोज किए गए हैं दुनिया में जिसने भी ज्ञान खोजा उसने उसे बांटा पूरी दुनिया का कल्याण किया।

बुद्ध ने ज्ञान को खोजा जनता के कल्याण के लिए सब को बांटा 45 वर्षों तक निरंतर घूम घूम कर ज्ञान बांटते रहे ताकि अनंत लोगों का कल्याण हो सके महान पुरुष और उसी ज्ञान को अन्य लोगों के कल्याण के लिए बांटते हैं मैंने ज्ञान को अर्जित किया देश विदेश के सिद्धांतों से यदि वह सब लोग ज्ञान बांटने का काम नहीं करते तो मैं भी क्या था।
मैंने भी ज्ञान प्राप्ति के बाद सबको ज्ञान मिले , सबको विकास का मार्ग मिले , सभी अपने दुखों को खत्म करके सुखों को उपलब्ध हो इसी का ख्याल करके स्कूलों की व्यवस्था की थी । ज्ञान प्राप्त लोगों को ज्ञान बांटने की जिम्मेदारी सौंपी थी परिणाम देख भी रहा हूं नई नई खोजों ने मानव की तरक्की को गति दी है । फिर इन दाढ़ी वाले बाबाओं की दाढ़ी में कौन सा सत्य छुपा है जिस को बताने से अनर्थ हो जाएगा। यह सच है कि यदि इसे बताएंगे तो अनर्थ हो जाएगा लेकिन किसका जिसने तुम्हें छुपाने के लिए कहा है क्योंकि इसमें कुछ है ही नहीं।
मेरा संविधान तुम्हें आवाज दे रहा है मैं तुम्हें इस देश का शासक देखना चाहता हूं एक महिला शिक्षित होती है तब वह दो परिवारों का भला करती है और यदि महिला अनपढ़ रहती है तो दो परिवार दुख में रहते हैं तुम पर पूरा दायित्व है परिवार को बचाओगी तभी ही समाज बच सकता है इसलिए बुद्ध की शरण में आ जाओ। प्रज्ञा, शील, समाधि का मार्ग तुम्हारी सुरक्षा सुख और समृद्धि का आधार बनेगा। तभी तुम देश की हुक्मरान बन सकती हो यह मेरी मंगल कामना है।

लेखक -उदय कुमार गौतम
(भारतीय मूलनिवासी संगठन के फैज़ाबाद, उ.प्र. जिले के महासचिव है)

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