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हमारे गौरवशाली इतिहास को अब छुपाया नही जा सकता है-पासवान

हमारा सच्चा गौरवशाली इतिहास छुपाया गया है इतिहासकारो ने इतिहास लिखते वक्त जातिवाद, भेदभाव बरता आज़ादी की लड़ाई की शुरुआत 1857 में मंगल पण्डे का नाम लेकर ढंके बजाये जाते है किन्तु गौरतलब हो की मंगल पण्डे को अंग्रेजो से विद्रोह, बगावत करने की प्रेरणा मातादीन वाल्मीकि से मिली वरना पण्डे जी जीवन भर अंग्रेजो की नौकरी ही करते रहते, मातादीन वाल्मीकि को अछूत होने के नाते भुला दिया गया।
दरअसल 1857 के "सिपाही विद्रोह" जिसके नायक के रूप में मंगल पांडे को माना जाता है, वह अंग्रेजी सेना के सिपाही थे। मातादीन छावनी की कारतूस फैक्ट्री में सफाई कर्मचारी थे। एक दिन मातादीन ने मंगल पांडे से पानी पीने के लिए लोटा मांगा तो मंगल पांडे ने साथ काम कर रहे अछूत सिपाही को लोटा देने से मना कर दिया। तब अपमानित मातादीन ने फटकारते हुए कहा,  बड़ा आया है ब्राह्मण का बेटा.... जिन कारतूसों का तुम उपयोग करते हो उन पर गाय और सूअर की चर्बी लगी होती है, जिसे तुम अपने दांतों से तोड़ कर बंदूक में भरते हो क्या उस समय तुम्हारा धर्म भ्रष्ट नहीं होता? इस तंज का मंगल पांडे के दिमाग पर गहरा असर पड़ा अंग्रेजों की इस करतूत को मंगल पांडे ने हिन्दू और मुस्लिम सिपाहियों की बैठक में बड़ी गंभीरता के साथ रखा मातादीन के इसी तंज ने सिपाहियों को जगा दिया।  सैनिकों ने कारतूस को दांत से खींचने से मना कर दिया अंग्रेज इस बात से बौखला गए, जिससे अनु. जाति मातादीन और मंगल पांडे को पकड़ कर फांसी दे दी गई. इससे बढ़कर विडंबना और क्या हो सकती है कि इतिहास में मंगल पांडे का नाम शहीदों में सबसे ऊपर है लेकिन आजादी का मंत्र फूंकने वाले मातादीन भंगी को भारतीय इतिहास में कहीं स्थान नहीं मिल सका?
जबकि आज़ादी की प्रथम लड़ाई 1857 में मंगल पण्डे द्वारा नहीं लड़ी गई थी, बल्कि जंगे आजादी की लड़ाई 1804 में ही शुरू हो गई थी। और यह लड़ाई लड़ी गई थी छतरी के नबाब द्वारा छतरी के नबाब का अंग्रेजो से लड़ने वाला परम वीर योद्धा था ऊदैया, जिसने सैकड़ो अंग्रेजो को मौत के घाट उतार दिया था। उदैया की वीरता के चर्चे अलीगढ के आस पास के क्षेत्रो में आज भी सुनाई देते हैं,उनको 1807 में अंग्रेजो द्वारा फाँसी दे दी गई थी 
इसी श्रेणी में बांके का नाम आता है, बांके जौनपुर जिले के मछली तहसील के गाँव कुवरपुर के निवासी थे , उनकी अंग्रेजो में इतनी दहशत थी की सन्1857 के समय उनके ऊपर 50 हजार का इनाम रखा था अंग्रेजो ने जरा सोचिये जब 2 पैसे की इतनी कीमत थी की उस से बैल, गाय ख़रीदा जा सकता था तो उस समय 50 हजार रूपये का इनाम कितना बड़ा होगा?
वीरांगना झलकारी बाई को कौन नहीं जानता? रानी झाँसी से बढ़ के हिम्मत और साहस की चर्चा सभी करते है किन्तु झलकारी बाई को भुला दिया गया कारण वह अनुसूचित जाति की उपजाति कोरी जति से थी।पर अछूत होने की वजह से उनको पीछे धकेल दिया गया और रानी झाँसी का गुणगान किया गया ।
इसके आलावा कुछ और अनुसूचित जाति, जनजाति के क्रान्तिकारियो के नाम जो गोरखपुर, उत्तरप्रदेश के अभिलेखों में दर्ज हैं।
आज़ादी की लड़ाई में चौरा- चौरी काण्ड एक मील का पत्थर है , इसी चौरा- चौरी कांड के नायक थे  रमापति, इन्ही के नेतृत्व में हजारो अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ावर्ग की भीड़ ने चौरा-चौरी थाने में आग लगा दी थी जिससे 23अंग्रेज सिपाहियो की जलने से मौत हो गई थी। प्रसिद्द इतिहासकार डी. सी. दिनकर ने अपनी पुस्तक ' स्वतंत्रता संग्राम में अछूतो का योगदान' में उल्लेख किया है कि - अंग्रेजो ने इस काण्ड में सैकड़ो को गिरफ्तार किया 228 अछूतों पर सेशन सुपुर्द कर अभियोग चला। निचली अदालत ने 172 अनुसूचित जाति, जनजाति के वीरो को फांसी की सजा सुनाई। इस निर्णय की ऊपरी अदालत में अपील की गई , ऊपरी अदालत ने 19 को फाँसी, 14 को आजीवन कारवास , शेष को आठ से पांच वर्ष की जेल हुई।
2 जुलाई 1923 को 18 अन्य दलितों के साथ चौरा- चौरी कांड के नायक रमापति को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया।
इसके आलावा 1942 के भारत छोडो आंदोलन में  मारने वाले और भाग लेने वाले कथित अछूतों की संख्या हजारो में हैं
ऊधम सिंह की वीरता क्यों छुपाई गई यह प्रश्न भी बहुत ही महत्वपूर्ण है जलियावाला बाग़ का बदला लेने वाले और लन्दन जाके माइकल आडेवयार को गोलियों से भून देने वाले अनुसूचित जाति के शहीद ऊधम सिंह जिसका नाम सुनते ही अंग्रेजो के होश उड़ जाते थे आज उन्हें भी इतिहासकारो ने छुपाया।
वी. आर. बौद्ध सैलानी - प्रदेश उपाध्यक्ष
रामनाथ - प्रदेश महासचिव
किन्तु सच्चाई तो सच्चाई होती है अब वक्त है की हम नौजवान शिक्षित वर्ग अपना इतिहास पुनः लिखे और स्वंय में हीनता के भाव खत्म करे यह कार्य हम अब सोशल मीडिया के माध्यम से बेहतर ढंग कर सकते है जरूत पड़ने पर धरातल पर भी उतरा जायेगा यह वक्तव्य सुरेश पासवान, राष्ट्रीय महासचिव वी लव बाबासाहेब सोशल सोसाइटी(रजि.) ने व्यक्त किए।
उन्होंने बताया कि देश भर के युवाओ को संगठित किया जा रहा है इसी श्रृंखला में गिरिराज वेद, प्रदेश अध्यक्ष, राजस्थान ने अधिवक्ता माला दास, राष्ट्रीय अध्यक्ष एंव विवेक भारती, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष से चर्चा करके राजस्थान के जुझारू युवाओ की टीम की पहली सूचि घोषित कर दी है।
राजस्थान के जुझारू, कर्मठ, सक्रिय अम्बेडकरवादियो सूची:
1. वी. आर. बौद्ध सैलानी - प्रदेश उपाध्यक्ष
2. रामनाथ - प्रदेश महासचिव
जिलाध्यक्षो की प्रथम सूची:
1. आर. के. मेघवाल - जालौर
2. बलवंत मेघवाल - सिरोही
3. बरहम देव बैरवा - दौसा
4. विजेंद्र कुमार बलाई - जयपुर
5. पृथ्वीराज बैरवा - करौली
6. बी. एक. पारस - श्री गंगानग




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